राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री देश के सबसे ताकतवर शख्सियत होते हैं और इनकी सुरक्षा से लेकर पल-पल की गतिविधि पर सुरक्षा एजेंसियों से लेकर तमाम सरकारी महकमे की नजरें लगी होती हैं। इनकी यात्राओं, बैठकों या मुलाकातों
आदि का कार्यक्रम कई दिन पहले तय हो जाता है और उस पर बारीकी से नजर रखी जाती है। किंतु मृत्यु का कोई कार्यक्रम नहीं होता और वह यह भी नहीं देखती कि जिसे वह ले जाने वाली है, वह प्रधानमंत्री है या राष्ट्रपति।
यह बात तब और पुख्ता स्वरूप में सामने आई थी, जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का देहांत हुआ था। आश्चर्यजनक ढंग से नेहरू की मृत्यु के बाद उनका पार्थिव शरीर बाथरूम में करीब एक घंटे तक उसी अवस्था में पड़ा रहा,जिस अवस्था में वह मृत्यु के समय था।
दरअसल, हुआ यूं था कि पंडित नेहरू अपने अंतिम दिनों में बीमार रहने लगे थे। उनके डॉक्टर केएल विग अक्सर उनका इलाज करते और दवाओं के साथ-साथ हिदायतें भी देते। डॉक्टर विग ने उनके निजी सेवा स्टाफ को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दे रखी थी कि 'नेहरूजी को एक पल के लिए भी अकेला न छोड़ा जाए।"
डॉक्टर विग की इस चेतावनी का पालन कुछ दिनों तक हूबहू हुआ भी। पंडित नेहरू का स्टाफ उन्हें प्रात: उठने से लेकर रात्रि में वापस शयन तक एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ता। किंतु बाथरूम में नहाते समय तो उन्हें अकेला छोड़ना ही पड़ता था। हालांकि डॉक्टर ने तो उस समय भी अकेला छोड़ने के लिए नहीं कहा था, किंतु नेहरू ने अपने स्टाफ को इस मामले में दूर रहने के लिए कहा था।
मगर उनका यह कहना ही घातक साबित हुआ। 27 मई 1964 को वे रोज की तरह अपने स्नान गृह में गए। उस समय उनके स्टाफ में कोई भी उनके पास नहीं था। नेहरू स्नान गृह में गए, किंतु जीवित नहीं लौटे क्योंकि न जाने किस क्षण वे अचेत होकर बाथरूम में गिर पड़े। बाद में उनके डॉक्टर विग ने परीक्षण कर खुलासा किया था कि 'वे मृत्यु के बाद एक घंटे से ज्यादा समय तक उसी अवस्था में पड़े रहे थे।"
नेहरू के असमय निधन की खबर देश-विदेश में जंगल में आग की तरह फैल गई थी। देश के करोड़ों नागरिक और दुनियाभर के राजनीतिज्ञ व पत्रकार जानना चाहते थे कि आखिर यह कैसे हो गया कि नेहरू अचानक चले गए। जबकि उनका स्वास्थ्य ऐसा नहीं था कि वे इतनी जल्दी चले जाते। अंतिम संस्कार के लिए काशी से पंडितों को विशेष विमान द्वारा दिल्ली लाया गया और पार्थिव शरीर पर छिड़कने के लिए गंगाजल भी मंगवाया गया।
चंदन की लकड़ी का तुरत-फुरत इंतजाम किया गया। इस तरह नेहरू असमय ही विदा हो गए।
साभार : एक जिंदगी काफी नहीं (कुलदीप नैयर)