कानपुर। Phoolan Devi’s Behmai Case : बीहड़ से लेकर संसद तक का सफर करने वाली फूलन देवी के बेहमई हत्याकांड पर सोमवार को फैसला आ रहा है। अपने साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म का बदला लेने के लिए कानपुर देहात के गांव बेहमई में 14 फरवरी 1981 को फूलन देवी के गिरोह ने गांव के 20 लोगों की दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद फूलन देवी के अंदर जल रही प्रतिशोध की आग शांत हुई। उन्होंने दो साल बाद 1983 में आत्मसमर्पण किया और 1993 में जेल से रिहा होने के बाद नए नई जिंदगी की शुरुआत की, जो 25 जुलाई 2001 में उनकी हत्या के साथ खत्म हो गई। शेर सिंह राणा ने बेहमई कांड का बदला लेने के लिए दिल्ली में फूलन देवी के घर के पास ही उन्हें गोली मार दी थी।
फूलन देवी की कहानी जितनी उतार-चढ़ाव से भरी फिल्मी है, उतनी ही फिल्मी कहानी है शेर सिंह राणा की भी। उत्तराखंड के रुड़की में 17 मई 1976 को जन्मे शेर सिंह राणा को फूलन देवी की हत्या के मामले में तिहाड़ जेल में बंद किया गया था, लेकिन राणा 17 फरवरी 2004 में जेल से फरार हो गए थे। जिस तरह से वह जेल से फरार हुए थे, वह भी अपने आप में अनोखा मामला था। यहां से भागकर राणा नेपाल, बांग्लादेश, और दुबई के रास्ते होते हुए अफगानिस्तान पहुंचे।
वहां उन्होंने अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की गजनी में रखी अस्थियों को खोद निकाला और साल 2005 में उन्हें लेकर भारत आए। इस घटना की उन्होंने वीडियो रिकॉर्डिंग भी की थी। इस कांड के बाद एक बार फिर से राणा का नाम समाचार पत्रों और चैनलों की सुर्खियों में छा गया था। इसके बाद राणा ने गाजियाबाद के पिलखुआ में पृथ्वीराज चौहान का मंदिर बनवाया, जहां पर उनकी अस्थियां आज भी रखी हुई हैं।
फूलन देवी की हत्या के मामले में दिल्ली की एक कोर्ट ने 2014 में दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, हमले में शामिल राणा के तीन दोस्तों को बरी कर दिया गया था। साल 2017 में इसी अदालत ने शेर सिंह राणा को जमानत दे दी। इसके बाद 20 फरवरी 2018 को छतरपुर से पूर्व विधायक राणा प्रताप सिंह की बेटी प्रतिमा राणा से रुड़की में शादी की। इस बार भी वह देशभर में सुर्खियों में रहे क्योंकि शेर सिंह राणा ने दहेज में मिली 10 करोड़ की खदान, 31 लाख रुपए के शगुन को ठुकराकर चांदी का सिक्का लेकर शादी की थी।