मल्टीमीडिया डेस्क। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों में पं. राम प्रसाद बिस्मिल का जिक्र ना आए यह संभव ही नहीं। 11 जून 1897 को जन्मे बिस्मिल ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया और देश के लिए न्यौछावर हो गए। बिस्मिल नहीं हैं लेकिन आज भी उनके शब्दों की ताकत हर युवा को जोश से भर देती है।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में मुरलीधर और मूलमती के घर जन्मे बिस्मिल ने अंग्रेजी स्कूल से पढ़ाई की लेकिन हिन्दी अपने पिता से सीखी। वहीं उर्दू पढ़ने के लिए वो मौलवी के पास जाते थे।
जब भी काकोरी कांड का जिक्र होता है तो बिस्मिल बरबस याद हो आते हैं। उनके द्वारा रची गई कई कविताएं अमर हो गईं और उनमें से एक है 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।'
ऐसे बन पड़ी थी
बिस्लिम शब्दों के जादूगर थे और हिन्दी के साथ उर्दू पर भी पकड़ रखते थे। एक दिन स्वतंत्रता सेनानी और उनके खास मित्र अशफाक उल्ला खां शाहजहांपुर के आर्य समाज मन्दिर में बिस्मिल से मिलने आए थे। इस दौरान अशफाक कुछ शायराना मूड में थे और बैठे-बैठे जिगर मुरादाबादी की चंद लाइनें गुनगुनाने लगे। वो लाइने थीं,
कौन जाने ये तमन्ना इश्क की मंजिल में है।
जो तमन्ना दिल से निकली फिर जो देखा दिल में है।।
अशफाक को यह गुनगुनाते सुन बिस्मिल मुस्कुरा दिये। उन्हें मुस्कुराते देख अशफाक को अटपटा लगा और पूछ बैठे कि क्यों राम भाई मैंने मिसरा कुछ गलत कह दिया क्या?
इसके जवाब में बिस्मिल ने कहा, नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया! यह बात नहीं। मैं जिगर साहब की बहुत इज्जत करता हूं मगर उन्होंने मिर्ज़ा गालिब की जमीन पर घिसा पिटा शेर कहकर कौन-सा बडा तीर मार लिया। कोई नई रंगत देते तो मैं भी इरशाद कहता।"
बिस्मिल की यह बात सुन अशफाक को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने बिस्िमिल को ही चुनौती देते हुए कहा कि तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊंगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी परले दर्जे की है।
इतना सुनते ही राम प्रसाद बिस्मिल ने जो कहा वो आज भी अमर है। वो लाइनें थीं,
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।।
बिस्मिल के शब्द सुनते ही अशफाक भावविभोर हो गए और बिस्मिल को गले लगा लिया। फिर बोले - "राम भाई! मान गये आप तो उस्तादों के भी उस्ताद हैं।"
उसके बाद बिस्मिल ने इसे कविता का रूप दिया जिसे पढ़कर कोई भी जोश से भर जाए। आप भी पढ़ें यह कविता:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूं खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसि के दिल में है.
दिल में तूफ़ानों कि टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहां मंज़िल में है,
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
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