Chandrayaan 3 Lunar Water। भारत के चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया है। चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद विक्रम लैंडर के अंदर से रोवर प्रज्ञान निकलेगा और चांद की सतह पर सैर पर निकलेगा। इसरो के वैज्ञानकों के मुताबिक विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान वहां धूल उड़ी होगी, जिसके थमने के बाद विक्रम लैंडर का गेट खुलेगा और उसमें से रोवर प्रज्ञान बाहर निकलेगा।
गौरतलब है कि दुनिया के अधिकांश देश चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी के खोज करने में लगे हुए हैं। भारत के चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर चांद के इस हिस्से में पानी की खोज कर लेता है तो यह भारत के लिए अभूतपूर्व उपलब्धि होगी। इसरो और नासा के खगोल वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर हजारों गहरे क्रेटर्स में पानी बर्फ के रूप में जमा हो सकता है। यहां पानी 3 अरब साल से बर्फ के रूप में जमा हो सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पानी के अलावा भी बहुत कुछ ऐसी जानकारी मिल सकती है, जिसके बारे में वैज्ञानिक अभी तक अनजान है।
चांद के दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर बहुत ज्यादा ठंडे हैं। नासा से जुड़े वैज्ञानिक डाना हर्ले का कहना है कि चंद्रमा पर लाखों धूमकेतुओं और उल्कापिंडों के टकराने के निशाने देखे जा सकते हैं। बर्फीले धूमकेतुओं के टकराने और सौर हवाओं के जरिए भी पानी के कण चंद्रमा पर पहुंचे हैं, जिनके करोड़ों सालों में दक्षिणी ध्रुव पर जमा होने की संभावना है।
चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी यदि बर्फ के रूप में मिल जाता है भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा का स्वरूप ही बदल जाएगा। चांद पर ही ईंधर के लिए हाइड्रोजन और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा सकता है। इसके अलावा मंगल ग्रह की ओर जाने वाले अंतरिक्ष मिशन के लिए चांद पर ही फ्यूल स्टेशन स्थापित किया जा सकता है।
आपको बता दें कि चांद पर सबसे पहले पानी की खोज भारत के चंद्रयान-1 ने ही की थी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने भारत के चंद्रयान-1 की मदद से चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की मैपिंग की थी। चंद्रयान-1 में लगे नासा के उपकरण मून मिनरोलॉजी मैपर (एमएमएम) से चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति को चिह्नित किया गया था।