ISRO Espionage Case: इसरो जासूसी केस में सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला, 4 आरोपियों की जमानत खारिज
ISRO Espionage Case चारों आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उनकी गिरफ्तारी अभी नहीं होगी, पहले हाईकोर्ट को याचिकाओं पर फिर से सुनवाई करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 5 हफ्ते तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाए।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Fri, 02 Dec 2022 12:10:13 PM (IST)
Updated Date: Fri, 02 Dec 2022 12:10:13 PM (IST)
ISRO Espionage Case । इसरो जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए 4 आरोपियों की जमानत को रद्द कर दिया है। आपको बता दें कि केरल हाईकोर्ट ने इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने वाले 4 आरोपियों को जमानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केरल हाईकोर्ट को चार हफ्तों के भीतर जमानत याचिकाओं पर फिर से फैसला करना होगा। हालांकि चारों आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उनकी गिरफ्तारी अभी नहीं होगी, पहले हाईकोर्ट को याचिकाओं पर फिर से सुनवाई करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 5 हफ्ते तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाए।
ISRO साइंटिस्ट नंबी नारायणन के खिलाफ रची थी साजिश
इसरो जासूसी मामले में सुनवाई जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने की। इन याचिका में वैज्ञानिक नंबी नारायणन के साजिश के तहत फंसाने वाले भी अधिकारियों की जमानत का विरोध किया गया था, जिन पर आरोप है कि उन्होंने इसरो साइंटिस्ट नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश रची थी और झूठे केस में फंसाया था।
साजिश में शामिल थे ये अधिकारी
इसरो जासूसी मामले में केरल के पूर्व DGP सिबि मैथ्यूज, गुजरात के पूर्व ADGP आरबी श्रीकुमार, पूर्व IB अधिकारी पीएस जयप्रकाश और केरल के दो पुलिस अधिकारियों पर नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान बेंच ने यह भी माना कि केरल हाई कोर्ट के फैसले में कुछ खामियां है, जिन्हें सुधारने की जरूरत है। इसके लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत आरोपों की जांच नहीं की गई है और हाईकोर्ट को इसे जल्द निपटाना चाहिए।
जानें क्या है इसरो का जासूसी मामला
साल 1994 में ISRO के वरिष्ठ वैज्ञानिक नंबी नारायणन की अचानक गिरफ्तारी हुई थी और उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने देश की जरूरी जानकारी पाकिस्तान भेजी हैं। नंबी नारायणन के खिलाफ जासूसी का केस बनाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया और इसके बाद नंबी नारायणन ने इंसाफ के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और निर्दोष साबित हुए। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में नंबी नारायणन को बरी कर दिया और साथ ही यातना और गिरफ्तारी के लिए मुआवजा के रूप में 50 लाख रुपए देने का भी आदेश दिया। वहीं सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन हुआ, जिसकी रिपोर्ट साल 2021 में सौंपी गई। इस रिपोर्ट के आधार पर ही आरोपियों पर मामला दर्ज हुआ।