उप्र में साथ रहेंगी हिंदी-उर्दू
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बने रहने का अधिकार मिल गया है।
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Publish Date: Thu, 04 Sep 2014 10:57:25 PM (IST)
Updated Date: Thu, 04 Sep 2014 11:00:48 PM (IST)
नई दिल्ली, ब्यूरो। पिछले 25 सालों से अपने खिलाफ मुकदमा झेल रही उर्दू को आखिर जीत हासिल हुई। उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बने रहने का अधिकार मिल गया है। अब बहनें समझी जाने वाली हिंदी व उर्दू उत्तर प्रदेश में साथ-साथ बनी रहेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी गुरुवार को इस पर मुहर लगा दी है।
उत्तर प्रदेश में उर्दू भाषा के हक पर मुहर लगाने वाला यह फैसला मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने उप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन की याचिका खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश के 1989 संशोधन अधिनियम व अधिसूचना को सही और वैधानिक ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 345 में हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा देने पर कोई रोक नहीं है।
गौरतलब है कि 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उप्र राजभाषा कानून में संशोधन किया और उर्दू को प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था। हिंदी को प्रदेश में पहली आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। उप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जो 1997 से लंबित थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 345 के प्रावधानों को बारीकी से समझा जाए तो इसके अनुसार हिंदी के साथ किसी दूसरी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन कोर्ट ने ये दलीलें ठुकरा दीं।