चंडीगढ़। अब जमाना नैनो टेक्नोलॉजी का है। वह दिन दूर नहीं जब स्निफर डॉग की बजाय ई-डॉग (प्वाइंट ऑफ केयर सेंसर नैनो टूल्स) रैली से पहले मैदान का मुआयना करेंगे और सेंसर की मदद से बम पहचानेंगे। ई-डॉग की खोज की है आईआईटी बॉम्बेे के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स के प्रमुख शोधकर्ता और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसर डॉ. वी रामगोपाल राव ने। वह ऐसे 15 नैनो उपकरण बना चुके हैं।
म्यूनिख (जर्मनी) की यूनिवर्सिटेट डेर बुंदेश्वर से पीएचडी प्रो. राव ने बताया कि प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. सीएनआर राव ने उन्हें विस्फोटकों की पहचान करने वाली किसी ठोस तकनीक पर काम करने को कहा। इस पर उन्होंने 2008 में ई-डॉग प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया, जोकि अब पूरा हो चुका है। उनका ई-डॉग भीड़ भरे मॉल में या रेलवे स्टेशन पर प्लांट बमों की पहचान कर सकता है।
बसों में सेंसर का प्रयोग
प्रो. रामगोपाल की टीम मुंबई की बेस्ट बसों में सेंसर नेटवर्क लगाने की तैयारी कर रही है। इसमें भी ई-डॉग जैसी तकनीक का ही इस्तेमाल होगा। वह बताते हैं कि पूरी बस में कई सेंसर लगे होंगे, जोकि बसों में होने वाली वाइब्रेशंस से चार्ज होंगे। इस तकनीक को पेटेंट भी कराया गया है।सेंसर लगी बस में यदि विस्फोटक रखे जाते हैं, तो उस पूरे एरिया में लाल सिग्नल दिखने लगेगा। इसकी जानकारी बस ड्राइवर के पास मौजूद टैबलेट के माध्यम मिल सकेगी और फिर तुरंत इसकी जांच की जा सकेगी।
रिसर्च को बाजार का साथ नहीं
प्रो. रामगोपाल को शिकायत है कि नए इनोवेशंस और रिसर्च को बाजार का समर्थन नहीं मिलता। रिसर्च का कमर्शियल इस्तेमाल और प्रोडक्ट को मार्केट में उतारना टेढ़ी खीर है। भारत में रिसर्च व इनोवेशंस की जगह सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू करना अधिक आसान है। अमेरिका जैसे देशों में रिसर्च के लिए जिस तरह सरकार और कॉरपोरेट कंपनियां फंड उपलब्ध कराती हैं, वैसा भारत में नहीं है। इंटेल, आइबीएम व अप्लाइड मेटेरियल्स जैसी प्रसिद्ध कंपनियों से जुड़े रहे प्रो. राव की रिसर्च का फोकस नैनो उपकरणों के डिजाइन, सर्किट सेंसर और उनके इस्तेमाल व प्रभाव को लेकर है। उनकी रिसर्च सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग में नैनो तकनीक के आधिकाधिक इस्तेमाल को लेकर केंद्रित है।