
हम सबको किसी न किसी चीज से डर लगता है। वक्त के साथ-साथ हम अपने-अपने डरों से उबरने लगते हैं। लेकिन कई बार कुछ डर ऐसे होते हैं जिनसे उबरने में हमें मुश्किल होती है और वह आगे चलकर समस्या का रूप ले लेती है।
यदि कोई इंसान सामाजिक माहौल से इतना डरने लगे कि हमेशा उसे अकेलापन रास आए तो यह एगोराफोबिया का लक्षण हो सकता है।
यह एक तरह का सोशल फोबिया है, जो तनाव और चिंता से जुड़ा है। एगोराफोबिया एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है। सरल शब्दों में कहें तो इसमें बाहर की दुनिया से भय लगता है।
एगोरा ग्रीक शब्द 'एगोरा' से बना है जिसका मतलब होता है गैदरिंग प्लेस या सार्वजनिक जगह। फोबिया मतलब डर। जिससे बनता है एगोराफोबिया और जिसका मतलब होता है सार्वजनिक जगह में जाने से डर लगना।
क्या हैं एगोरोफोबिया होने के कारण
अभी तक इस समस्या के कारणों के बारे में स्पष्ट रूप से पता नहीं लगाया जा सका है। फिर भी आत्मविश्वास की कमी, भीड़ से जुड़ा बचपन का कोई बुरा अनुभव और नकारात्मक विचार इस मनोरोग के लिए जिम्मेदार होते हैं। कई बार मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर की संरचना में बदलाव आने से भी लोगों को छोटी-छोटी बातों से घबराहट होने लगती है। आनुवंशिकता की वजह से भी व्यक्ति को यह समस्या हो सकती है।
उपचार के आसान तरीके
अगर सही समय पर उपचार कराया जाए तो यह समस्या आसानी से हल हो जाती है। इसमें दवाओं और काउंसलिंग
के जरिये मरीज का उपचार किया जाता है। बिहेवियर थेरेपी के जरिये उसका आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश की
जाती है।
आमतौर पर छह माह से एक साल के भीतर व्यक्ति की मानसिक अवस्था सामान्य हो जाती है। ऐसी स्थिति
में परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
अगर आपके परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई दे, जो सार्वजनिक स्थलों पर जाने से हमेशा कतराए या वहां जाने के बाद उसकी तबीयत बिगड़ जाती हो।
उसके लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए कैसे करें इसकी पहचान इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण से जुड़ी किसी भी सामाजिक स्थिति का सामना करने में घबराहट हो सकती है।