Gyanvapi ASI Survey: विशेष तकनीक से सर्वे कर रही एएसआई, बगैर खुदाई 10 मीटर तक की मिलती है जानकारी
Gyanvapi ASI Survey आपको बता दें कि कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव धातु है, जिसकी विकिरण आयु करीब 5700 वर्ष है।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Fri, 04 Aug 2023 11:58:52 AM (IST)
Updated Date: Fri, 04 Aug 2023 12:01:22 PM (IST)
GPR प्रणाली से भूगर्भ में 20 मीटर नीचे तक दबे रहस्यों की जानकारी हासिल की जा सकती है। HighLights
- कुंड में शिवलिंग है या फव्वारा, इसका पता भी आधुनिक तकनीक से लगाया जा सकता है।
- ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार तकनीक से विशेषज्ञ ज्ञानवापी के रहस्यों का पता लगाएंगे।
- जानें क्या कहते हैं BHU के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ
Gyanvapi ASI Survey। वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में जारी सर्वे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम एक खास तरह की तकनीक का उपयोग कर रही है। इस तकनीक का नाम ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) है। इस अत्याधुनिक तकनीक से लैस यंत्रों की मदद से विशेषज्ञ ज्ञानवापी के रहस्यों का पता लगाएगी।
ज्ञानवापी परिसर को नहीं होगा कोई नुकसान
BHU के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह के मुताबिक, GPR प्रणाली से भूगर्भ में 20 मीटर नीचे तक दबे रहस्यों की जानकारी हासिल की जा सकती है। वहीं दूसरी ओर IIT बीएचयू के मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग में सहायक प्रोफेसर डाक्टर चंदन उपाध्याय के अनुसार, किसी भी वस्तु की आयु ज्ञात करने के लिए कार्बन डेटिंग की जाती है। इस तकनीक में संबंधित वस्तु का थोड़ा सा हिस्सा काट कर प्रयोगशाला में ले जाना होता है। वहां उस पदार्थ में कार्बन के आइसोटोप, कार्बन-14 की मात्रा के आधार पर उसकी उम्र का पता लगाया जाता है।
कार्बन-14 की आयु 5700 वर्ष
आपको बता दें कि कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव धातु है, जिसकी विकिरण आयु करीब 5700 वर्ष है। इसका मतलब है कि कि किसी अवशेष में कार्बन-14 की मात्रा 5700 वर्षों में घटकर आधी रह जाएगी। किसी अवशेष में कार्बन-14 उपस्थित मात्रा के आधार पर ही उम्र की गणना की जाती है। इस मामले में न्यायालय का यह निर्णय उचित है कि
कार्बन डेटिंग से शिवलिंग को नुकसान पहुंच सकता है।
UV इमेजिंग, एक्स-रे चित्रण व पराश्रव्य ध्वनि छायांकन
IIT बीएचयू के मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर डॉ. अखिलेश सिंह के मुताबिक, पुरातात्विक व ऐतिहासिक वस्तुओं को बगैर किसी तरह का नुकसान पहुंचाए पूरी जानकारी सामने लाने के लिए कई गैर विनाशकारी परीक्षण (NDT) पद्धतियां इंजीनियरिंग में उपयोग में लाई जाती है। इन परीक्षण विधियों के प्रयोग से भी ज्ञानवापी का सत्य जाना जा सकता है।
शिवलिंग या फव्वारा, सामने आएगी सच्चाई
ज्ञानवापी परिसर में स्थित कुंड में शिवलिंग है या फव्वारा, इसका पता भी आधुनिक तकनीक से लगाया जा सकता है। इसके लिए एक्स रे रेडियोग्राफी, यूवी-इमेजिंग और अल्ट्रासोनिक साउंड इमेजिंग जैसी आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग किया जा सकता है। वहीं एलिमेंट एनालिसिस तकनीक से यह भी पता किया जा सकता है कि शिवलिंग के ऊपर और आसपास किस तरह के पदार्थ उपयोग में लाए गए हैं।