नई दिल्ली। जनरल बिपिन रावत अपने बचपन में हर सुबह स्कूल यूनीफार्म पहनते हुए सेना की वर्दी पहनने का ख्वाब देखते थे। उनके जीवन ने अपना चक्र पूरा किया जब वह 27वें सेना प्रमुख बने। उत्तराखंड के रहने वाले जनरल रावत ने कहा कि अपने स्कूली दिनों में मिली मानवी शिक्षा को वह कभी नहीं भूले।
साथ ही यह भी कहा कि विफल होने वालों की क्षमताओं पर कभी संदेह न करें। सेना प्रमुख जनरल रावत ने विगत शुक्रवार को जम्मू और कश्मीर के राजौरी जिले में छात्रों के एक समूह से बातचीत की। देहरादून में इंडियन मिलेट्री एकेडमी से प्रतिष्ठित स्वार्ड ऑफ ऑनर अवॉर्ड जीत चुके सेना प्रमुख ने अपने बचपन के सपने का जिक्र कर बताया कि वह हमेशा से सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे।
उन्हें शुरुआत से ही सेना की जिंदगी बहुत आकर्षित करती थी। साथ ही छात्रों से आग्रह किया कि वह विफलताओं से निराश न हों और मेहनत करने से भी डरें नहीं। उन्होंने कहा कि विफल होने वाले लोगों की क्षमताओं पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए।
ऐसे लोग सफल होने वाले लोगों से अधिक मेहनत करके अपनी गलतियों को सुधारते हैं और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हैं। उन्होंने छात्रों को बताया कि सफलता की उम्र बहुत छोटी होती है। प्रसिद्धि बहुत कम समय के लिए होती है। अपनी सफलता को बरकरार रखने के लिए आपको लगातार मेहनत करनी पड़ती है।
सेना प्रमुख ने अपने नजरिए को स्पष्ट करने के लिए अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए कहा कि मुझसे एक साल वरिष्ठ एक छात्र था। वह अपनी कक्षा में फेल हो गया। इसलिए वह हमारी क्लास (9वीं) में हमारे साथ आ गया। इसके बाद 10वीं कक्षा में उसका प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा और वह पास हो गया।
मगर, 11वीं कक्षा में उसने टॉप किया। जब बोर्ड पर परीक्षा का परिणाम लिखा गया, तो उसका नाम सबसे ऊपर था। मैं प्रथम पांच बच्चों में था, लेकिन उस छात्र ने साबित कर दिया कि विफल होने वाले लोग भी अपने अच्छे प्रदर्शन और दृढ़ निश्चय से एक महान प्रेरणास्रोत बन सकते हैं। जनरल रावत ने बताया कि अब वह छात्र एक प्रख्यात डॉक्टर है।