नितिन प्रधान, बक्सर। कहते हैं कि बिहार के जनक माने जाने वाले डा. सच्चिदानंद सिन्हा के मामा का जब निधन हुआ तो उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके रिश्तेदारों को गंगा के उत्तरी किनारे पर जाना पड़ा। वजह यही कि यहां गंगा के दक्षिणी किनारे पर पानी ही नहीं था। आज भी स्थितियां बदली नहीं हैं। राज्य के बारह जिलों से होकर बहने वाली गंगा सिमट कर अपने मूल किनारों से लगातार दूर होती जा रही है।
प्रदेश के बारह जिलों की जीवनदायिनी मानी जाने वाली गंगा की इस बदहाली के बावजूद विधानसभा चुनावों में गंगा मुद्दा नहीं है। मुद्दा ही नहीं, हैरानी इस बात की है कि देश में गंगा के संरक्षण को लेकर चल रहे जोरदार अभियान के बावजूद चुनाव में गंगा को लेकर कोई राजनेता बात भी नहीं कर रहा है। जिन बारह जिलों से होकर बिहार में गंगा बहती है उनमें विधानसभा की साठ से अधिक सीटें पड़ती हैं।
बिहार में गंगा बक्सर के चौसा से प्रवेश करती है और कटिहार जिले में राज्य को छोड़ती है। इस पूरे क्रम में गंगा प्रदेश में करीब 526 किलोमीटर का सफर करती है। गंगा का यह सफर कई लोगों की रोजी रोटी का सहारा है। उत्तर प्रदेश छोड़कर बिहार में प्रवेश करते करते गंगा का पानी इतना कम हो जाता है कि अब पटना शहर में ही गंगा के बीच रेत के टापू आसानी से देखे जा सकते हैं। जानकारों का मानना है कि गंगा बिहार पर शासन करने वाले राजनेताओं की प्राथमिकता में कभी रही ही नहीं।
गंगा पर बीते 33 वषोर् से शोध कर रहे और डाल्फिन मैन कहे जाने वाले पटना साइंस कालेज में प्रोफेसर डा. आरके सिन्हा कहते हैं, "गंगा के उद्धार की दिशा में बिहार सरकार का कभी कोई योगदान नहीं रहा। आज तक पटना शहर में गंगा में गिरने वाले एक भी नाले को बंद नहीं किया गया है।"
यह भी दिलचस्प है कि बिहार में बेहद कम पानी के साथ प्रवेश करने वाली गंगा जब प्रदेश को छोड़ती है तो उसमें चार गुणा अधिक पानी होता है। यह पानी उसे नेपाल से आने वाली शारदा, गंडक, घाघरा और कोसी नदियों से मिलता है।
डा. सिन्हा कहते हैं कि दरअसल असल गंगा तो उत्तर प्रदेश के नरौरा पहुंचते-पहुंचते ही खत्म हो जाती है। यही वजह है कि बिहार तक गंगा अपना मूल अस्तित्व खो देती है। लेकिन बिहार की सहायक नदियां गंगा के नदी स्वरूप को आज भी बनाए हुए हैं जिसके चलते पटना में गंगा का रिवर फ्रंट 20-25 किलोमीटर का आकार ले लेता है। केन्द्र की पूर्ववर्ती सरकारों ने गंगा एक्शन प्लान के जरिए गंगा के नदी स्वरूप को बचाए रहने की परिकल्पना तो की। लेकिन सिन्हा कहते हैं कि इसकी सिफारिशों पर अमल करने की कोशिश कभी नहीं हुई।
सिन्हा बताते हैं कि हर दो महीने पर केन्द्र व राज्य सरकार को गंगा की ताजा स्थिति से अवगत कराया जाता रहा है। लेकिन बिहार की सरकारों ने भी कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद पहली बार गंगा को लेकर गंभीरता दिखाई दी है। बीते साल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी दिल्ली में हुई राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक में बिहार में गंगा की साफ सफाई को लेकर प्रतिबद्धता जताई। इसके बावजूद राज्य सरकार की तरफ से अब तक इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ है। राज्य के दो चरण का मतदान होने के बावजूद गंगा किनारे बसे जिलों में होने वाली चुनावी सभाओं में भी गंगा मुद्दे के तौर पर नहीं दिखती।
इन जिलों से होकर बहती है गंगा
जिला- विधानसभा क्षेत्र
बक्सर............ ब्रह्मपुर, बक्सर, डुमरांव, राजपुर
भोजपुर...........संदेश, बरहरा, आरा, अजियांव, तरारी, जगदीशपुर, शाहपुर
पटना..........मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, फतुहा, दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौढ़ी
लखीसराय.......शेखपुरा, बरबीघा मुंगेर...... तारापुर, मुंगेर, जमालपुर
भागलपुर......बिहपुर, गोपालपुर, पीरपैंती, कहलगांव, भागलपुर, सुल्तानगंज, नाथनगर
सारण.....एकमा, मांझी, बनियापुर, तरैया, मरहौरा, छपरा, गारखा, अमनौर, पारसा, सोनपुर
वैशाली...... हाजीपुर, लालगंज, वैशाली, महुआ, राजापकड़, राघोपुर, माहनेर, पातेपुर
समस्तीपुर....कल्याणपुर, वारिसनगर, समस्तीपुर, उजैरपुर, मोरवा, सरायरंजन, मोहिउद्दीननगर, बिभुतीपुर, रोसड़ा, हसनपुर
बेगुसराय.......चेड़िया-बरियारपुर, बछवाड़ा, तेगड़ा, मटियानी, साहिबपुर कमाल, बेगुसराय, बखरी
खगड़िया...... अलौली, खगड़िया, बेल्दौर, परबत्ता
कटिहार.....कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्रानपुर, मनिहारी, बरारी, कोड़हा