Faizabad Lok Sabha Seat: इस बार दूसरा ऐसा मौका, जब चुनाव मैदान में नजर नहीं आ रही कांग्रेस
साल 1957 में कांग्रेस से राजाराम मिश्र, 1962 में बाबू बृजवासी लाल, 1967 व 71 में आरके सिन्हा Faizabad Lok Sabha Seat से सांसद चुने गए थे।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Wed, 10 Apr 2024 09:31:38 AM (IST)
Updated Date: Wed, 10 Apr 2024 09:32:32 AM (IST)
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब दूसरी बार ऐसा अवसर आया है, जब कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के लिए फैजाबाद संसदीय सीट छोड़ दी है। HighLights
- Faizabad Lok Sabha Seat के लिए कांग्रेस ने पहली बार समझौता साल 1998 में किया था।
- गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर दीनानाथ दीनबंधु दास ने यहां चुनाव लड़ा था, लेकिन वे अपना कोई प्रभाव नहीं दिखा पाए थे।
- दीनानाथ दीनबंधु दास को सिर्फ 1717 मत मिले थे।
नवनीत श्रीवास्तव, अयोध्या। देश की आजादी के बाद करीब 25 साल तक फैजाबाद संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। कभी कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर इस बार ऐसा दूसरा अवसर आया है, जब देश की सबसे पुरानी पार्टी चुनाव मैदान से बाहर है। दोनों ही बार कांग्रेस को सहयोगी दलों के साथ समझौते के तहत इस सीट को छोड़ना पड़ा था।
1998 में भाकिका ने छोटी थी सीट
Faizabad Lok Sabha Seat के लिए कांग्रेस ने पहली बार समझौता साल 1998 में किया था, जब भारतीय किसान कामगार पार्टी के लिए यह सीट छोड़ दी थी। गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर दीनानाथ दीनबंधु दास ने यहां चुनाव लड़ा था, लेकिन वे अपना कोई प्रभाव नहीं दिखा पाए थे। दीनानाथ दीनबंधु दास को सिर्फ 1717 मत मिले थे। इस सीट से पहली बार सपा प्रत्याशी दिवंगत मित्रसेन यादव की जीत हुई थी। मित्रसेन ने 1998 के लोकसभा चुनाव में 2 लाख 53 हजार, 331 मत प्राप्त कर जीत हासिल की थी।
इस बार सपा के लिए कांग्रेस ने छोड़ी सीट
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब दूसरी बार ऐसा अवसर आया है, जब कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के लिए फैजाबाद संसदीय सीट छोड़ दी है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर से विधायक अवधेश प्रसाद को प्रत्याशी घोषित किया है।
ऐसे खिसकती गई कांग्रेस की जमीन
- साल 1957 में कांग्रेस से राजाराम मिश्र, 1962 में बाबू बृजवासी लाल, 1967 व 71 में आरके सिन्हा Faizabad Lok Sabha Seat से सांसद चुने गए थे।
- आपातकाल के बाद 1977 में पहली बार कांग्रेस को चुनाव में हार मिली है। इमरजेंसी के बाद यहां चुनाव में भारतीय लोकदल के अनंतराम जायसवाल ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस के आरके सिन्हा को बुरी हार का सामना करना पड़ा था
- अगले ही चुनाव में कांग्रेस के जयराम वर्मा ने 45.6 प्रतिशत वोटों के साथ शानदार जीत हासिल कर ली थी। इसके बाद 1984 में कांग्रेस के ही टिकट पर निर्मल खत्री पहली बार सांसद चुने गए।