कोलकाता। महानगर की 18 वर्षीया छात्रा हेतल पारेख के साथ दुष्कर्म व हत्या की घटना के 26 साल बीतने एवं इस जुर्म में धनंजय चटर्जी को फांसी दिए जाने के करीब 12 साल गुजरने के बाद अब एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर हेतल को किसने मारा? दरअसल भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ) के दो प्रोफेसर व एक रिटायर्ड इंजीनियर ने एक किताब लिखी है।
इसमें दावा किया गया है कि धनंजय चटर्जी को इस मामले में गलत तरीके से दोषी साबित किया गया। सच्चाई को सामने लाने व असली गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए उन्होंने सलाह दी है कि यह मामला ऑनर किलिंग का हो सकता है इसलिए इसकी फिर से जांच कराई जाए। लेखकों का दावा है कि इस मामले में धनंजय को बलि का बकरा बनाया गया।
आपको बता दें कि आइएसआइ के सांख्यिकी विभाग में प्रोफेसर प्रबल चौधरी व व्यावहारिक सांख्यिकी विभाग के प्रोफेसर देवाशीष सेनगुप्ता ने धनंजय मामले में अपने प्राथमिक अध्ययन व निष्कर्षों पर आधारित एक रिपोर्ट पिछले साल प्रकाशित की थी। इस काम में उनके साथ सेवानिवृत्त इंजीनियर परमेश गोस्वामी भी थे। अब तीनों लेखकों ने मिलकर पूरी घटना पर आधारित अपने विस्तृत निष्कर्ष को एक किताब का रूप दिया है। अगले हफ्ते "अदालत मीडिया समाज एवं धनंजय की फांसी" नामक किताब प्रकाशित की जाएगी।
लेखकों ने बताया कि 11 अगस्त को बांकुड़ा जिले के छातना स्थित भारत सभा हॉल में धनंजय के परिजनों की उपस्थिति में इस किताब का विमोचन किया जाएगा। धनंजय चटर्जी को कोलकाता के अलीपुर सेंट्रल जेल में 14 अगस्त, 2004 को फांसी दी गई थी। लेखकों का मानना है कि धनंजय की फांसी हमेशा विवादों व बहस का विषय बनी रही क्योंकि परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर ही उसे दोषी साबित किया गया।
इससे पहले इसी साल मार्च में छातना नागरिक समिति ने इस मामले की फिर से जांच के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मांग की थी। इस पहल में समिति के साथ लेखक भी जुड़े हैं। किताब में लेखकों ने आशंका जताई है कि यह कथित दुष्कर्म नहीं, बल्कि आम सहमति से यौन संबंध का मामला था।
गौरतलब है कि 1990 में मध्य कोलकाता के एक अपार्टमेंट में हेतल के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में निचली अदालत से लेकर हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक ने धनंजय को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। फिर राष्ट्रपति से भी दया याचिका खारिज होने पर उसे फांसी पर लटका दिया गया था।