नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप संबंधी मामले में अब यह बहस होगी की यह केस सुनवाई के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता भी है या नहीं। जस्टिस बीडी अहमद व जस्टिस संजीव सचदेव की पीठ के समक्ष मुख्यमंत्री के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर उन्हें बहस करने का मौका ही नहीं दिया गया। मामले की अगली सुनवाई अब तीन दिसंबर को होगी।
बुधवार को सुनवाई शुरू होते ही न्यायमित्र हरिहरन व सिद्धार्थ अग्रवाल ने अदालत को बताया कि मामले की जांच सीबीआई कर रही है। मुकदमे दर्ज किए गए हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी विचाराधीन है। मुख्यमंत्री ने मामले को हिमाचल हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने को अर्जी दायर की है।
अदालत ने कहा कि वह मुख्यमंत्री के अधिवक्ता के कहने पर मामले में अधिकार क्षेत्र पर बहस के लिए अनुमति दे रही है। हालांकि जब अदालत ने खुद इस मामले में संज्ञान लिया है तो यह मुद्दा होना ही नहीं चाहिए। 14 अक्टूबर को सीबीआइ व आयकर विभाग ने सील बंद लिफाफे में मामले से संबंधित अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में दाखिल की थी।
इससे पूर्व सरकारी वकील ने हाई कोर्ट में कहा था कि मुख्यमंत्री की दिल्ली में भी जमीन-जायदाद है, जो गलत तरीके से खरीदी गई हैं। वहीं मुख्यमंत्री की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि जब वीरभद्र सिंह पर लगे आरोपों की जांच हिमाचल प्रदेश में हो रही है और वहां अदालत में यह मामला विचाराधीन है तो दिल्ली हाई कोर्ट में उनके खिलाफ सुनवाई नहीं की जा सकती। यह मामला हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
28 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व जस्टिस जयंत नाथ की पीठ ने मामले को सुनने से इन्कार कर दिया और केस ट्रांसफर कर दिया था। गत 26 मार्च को अदालत ने शिकायतकर्ता गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) कॉमन कॉज को मामले से अलग कर दो न्यायमित्र नियुक्त किए थे।
यह है मामला
पेश मामले में कॉमन कॉज ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से नवंबर, 2013 में एक याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि सीबीआइ को निर्देश दिया जाए कि वह वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच करे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जब वह केंद्र सरकार में इस्पात मंत्री थे तो उस वक्त भ्रष्टाचार में लिप्त थे। जनवरी, 2014 में वकील प्रशांत भूषण ने एक और अर्जी दायर कर आरोप लगाया था कि वीरभद्र ने बतौर मुख्यमंत्री भी रिश्वत ली थी।