Chandrayaan-3 Rover Update: रोवर प्रज्ञान में लगे हैं 3 पेलोड, एक चंद्र दिवस में करेंगे ये बड़े काम
प्रज्ञान रोवर की लाइफ 14 दिन की है। यह चंद्रमा पर 14 दिन रहेगा। 14 दिन इसलिए कि चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है।
By Arvind Dubey
Edited By: Arvind Dubey
Publish Date: Wed, 23 Aug 2023 01:25:22 PM (IST)
Updated Date: Wed, 23 Aug 2023 01:25:22 PM (IST)
विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने के दो घंटे बाद रोवर प्रज्ञान बाहर निकलेगा। HighLights
- चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा विक्रम
- लैंडर से बाहर निकलेगा रोवर
- चंद्रमा पर 14 दिन करेगा अध्ययन
बेंगलुरु। चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लैंडिंग में चंद घंटों का समय बचा है। विक्रम लैंडर (Vikram Lander) की सफल लैंडिंग के बाद प्रज्ञान रोवर (Pragyan Rover) का काम शुरू होगा। प्रज्ञान रोवर के साथ तीन पेलोड भेजे गए हैं। इनमें से एक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का है।
- पेलोड-1: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टान का अध्ययन करेगा।
- पेलोड-2: रासायनिक पदार्थों और खनिजों का अध्ययन करेगा और देखेगा कि इनका स्वरूप कब-कितना बदला है, ताकि इतिहास जाना जा सके।
- पेलोड-3: यह जांचेगा कि चंद्रमा पर जीवन की क्या संभावना है और पृथ्वी से इसकी कोई समानता है भी कि नहीं।
लैंडर के कितने देर बाद बाहर निकलेगा रोवर
विक्रम लैंडर के चांद की सतह पर उतरने में करीब 15 मिनट का समय लगेगा। वैज्ञानिक इसे ‘15 मिनट टेरर’ कह रहे हैं। विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने के दो घंटे बाद रोवर प्रज्ञान बाहर निकलेगा।
2 घंटे का समय इसलिए रखा गया है कि लैंडर के चंद्रमा की सतह पर गिरने से जो धुल मिट्टी उड़ेगी, वह बैठ जाएगी। लैंडर में लगे पेलोड से चांद की सतह का अध्ययन किया जाएगा। इसमें नासा का भी पेलोड लगा है।
एक चंद्र दिवस यानी 14 दिन
प्रज्ञान रोवर की लाइफ 14 दिन की है। यह चंद्रमा पर 14 दिन रहेगा। 14 दिन इसलिए कि चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। इसे चंद्र दिवस कहा जाता है।
लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 से ऐसे होगा हमारा सम्पर्क
चंद्रमा के इसी हिस्से में हो सकता है प्रचुर मात्रा में पानी
चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना है। चंद्रमा के इस हिस्से के बारे में इन्सान को ज्यादा जानकारी नहीं है। अपने पर्यावरण और उसके द्वारा पेश की जाने वाली कठिनाइयों के कारण यह बहुत अलग भूभाग हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र के हमेशा अंधेरे में रहने वाले स्थानों पर पानी की प्रचुर मात्रा हो सकती है।