Chandrayaan-3 Landing: चंद्रमा की सतह पर यान का उतरना इतना मुश्किल क्यों, ISRO का चैलेंज और बड़ा
50 साल पहले इंसान ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था, लेकिन आज किसी भी यान को चंद्रमा की सतह पर उतारना बहुत मुश्किल है।
By Arvind Dubey
Edited By: Arvind Dubey
Publish Date: Sun, 20 Aug 2023 02:06:45 PM (IST)
Updated Date: Mon, 21 Aug 2023 11:44:35 AM (IST)
इसरो ने अपने यान को साउथ पोल पर उतारने का मुश्किल फैसला लिया है। HighLights
- चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा विक्रम लैंडर
- 23 अगस्त की शाम को होगी लैंडिंग
- सफलता मिली तो भारत होगा दुनिया का पहला देश
श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) का चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) चंद्रमा से चंद किमी दूर है। विक्रम लैंडर चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा। सफलता मिलती है तो भारत चंद्रमा के इस हिस्से में यान उतारने वाला दुनिया का पहला देश होगा।
यहां जानिए चंद्रमा पर किसी भी यान की लैंडिंग इतनी मुश्किल क्यों होता है और आखिर क्यों कोई भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान को उतारने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाया?
चंद्रमा की सतह पर यान की लैंडिंग इतनी मुश्किल क्यों
- 50 साल पहले इंसान ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था, लेकिन आज किसी भी यान को चंद्रमा की सतह पर उतारना बहुत मुश्किल है। चंद्रयान-3 के मामले में भी सबसे मुश्किल काम यही होने जा रहा है।
- चीन एकमात्र देश है, जिसने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग पूरी की। चीन ने 2013 में चांग-5 मिशन के साथ अपने पहले ही प्रयास में यह उपलब्धि हासिल कर ली थी।
- कोई भी यान 3,84,400 किलोमीटर की यात्रा तय करने के बाद चंद्रमा तक पहुंचता है। इसके बाद बारी आती है सॉफ्ट लैंडिंग की।
- सॉफ्ट लैंडिंग में सबसे बड़ी चुनौती होती है यान की गति को कम करना। इसके लिए फ्यूल का इस्तेमाल होता है। फ्यूल भरा होने के कारण यान का वजन ज्यादा होता है। फ्यूल का इस्तेमाल संतुलित मात्रा में करना होता है।
- सॉफ्ट लैंडिंग के समय धरती से कोई कमांड नहीं दी जा सकती है। मतलब, यान में लगे कंप्यूटर और सेंसर को खुद फैसला करना होता है कि स्पीड कम करने के लिए कितना फ्यूल इस्तेमाल करना है, कहां लैंड करना है।
- यह फैसला करने के लिए यान में लगे कंप्यूटर और सेंसर के पास बहुत कम समय होता है। धूल उड़ने के कारण सेंसर कंफ्यूज हो सकते हैं।
- चंद्रमा की सतह उबड़-खाबड़ है। इस कारण भी यान को उतारना मुश्किल काम है।
- धरती का वातावरण इतना घना है कि घर्षण के कारण अंतरिक्ष यान की लैंडिंग धीमी हो जाती है। वहीं चंद्रमा के साथ ऐसा नहीं। इसलिए अंतरिक्ष यान के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका बना रहती है।
- चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग का अर्थ है 6,000 किमी/घंटा से अधिक की गति से शून्य तक जाना। यह बहुत मुश्किल काम है।
- चंद्रमा पर सटीक लैंडिंग के लिए कोई डिजिटल मैप नहीं है। यही कारण है कि ऑनबोर्ड कंप्यूटरों को चंद्रमा पर उतरने के लिए त्वरित गणना और निर्णय लेने होंगे।
डीबूस्टिंग प्रक्रिया शुरू होने के बाद से विक्रम लैंडर 'स्वचालित मोड' में है। अब यह डेटा के आधार पर और अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर तय करेगा कि अपने आगे के काम कैसे करना है।- के. सिवन (भारतीय अंतरिक्ष के पूर्व अध्यक्ष)
इसरो ने अपने यान को साउथ पोल पर उतारने का मुश्किल फैसला लिया है। यहां बर्फ है। इसलिए चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता पर अहम जानकारी दुनिया को मिलेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा का साउथ पोल (दक्षिणी ध्रुव) अपने गर्भ में कई अहम खनिजों को लिए हो सकता है। चंद्रयान-3 इसका अध्ययन करेगा। यहां आने वाले आंधी-तूफानों का पता लगाया जाएगा, जिनका असर धरती पर भी पड़ता है। पता लगाया जाएगा कि क्या यहां इंसानी बस्तियां बसाई जा सकती हैं।
View from the Lander Imager (LI) Camera-1
on August 17, 2023
just after the separation of the Lander Module from the Propulsion Module #Chandrayaan_3 #Ch3 pic.twitter.com/abPIyEn1Ad
— ISRO (@isro) August 18, 2023
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को छाया क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को बहुत कम जानकारी हासिल है। यहां अपना यान उतारकर भारत दुनिया के लिए बड़ी खोज कर सकता है।