मनोज त्रिपाठी, फिरोजपुर। पंजाब में काली गाजर की खेती ने सरहद के किसानों को मालामाल करके उन्हें खेती के लिए नई ऊर्जा दी है। तमाम गुणों से युक्त काली गाजर की खेती को किसान लगातार तरजीह दे रहे हैं। काली गाजर के गुणकारी होने के कारण तेजी से बाजार पर इसका कब्जा भी बढ़ रहा है। यही कारण है कि देश ही नहीं विदेश में भी इसकी मांग बढ़ने लगी है। किसान इसे एक्सपोर्ट करने की दिशा में बढ़ चुके हैं।
भारत-पाकिस्तान सीमा पर सैकड़ों किसानों ने काली गाजर की खेती को सब्जियों की फसल का एक हिस्सा बना लिया है। ममदोट में काली गाजर की खेती कर रहे जसवंत सिह बताते हैं कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) के किसान ट्रेनिंग कैंप में भाग लेने के बाद उन्हें पता चला कि काली गाजर की खेती कितनी महत्वपूर्ण है। उन्होंने आधा एकड़ में काली गाजर की खेती की।
जब बाजार में गाजर लेकर गए तो देखा कि लोग पीली व लाल गाजर ज्यादा खरीद रहे हैं। उन्होंने पीएयू के किसान ट्रेनिंग कैंप में दोबारा संपर्क किया। वहां उन्हें जानकारी मिली कि इसे सामान्य बाजार में बेचने की बजाय विशेष जगहों पर हाई प्रोफाइल इलाकों की सब्जियों की दुकानों पर सप्लाई करें। वहां इसकी डिमांड है। इसके बाद उन्होंने लुधियाना की बाजार में इसके खरीदारों को चुना। महज छह साल में वे जिले में काली गाजर की खेती करने वाले सबसे बड़े किसान बन गए। उनके अनुसार एक बार की फसल में 50 से 80 हजार रुपये तक की गाजर आराम से पैदा हो जाती है।
कैंसर व पेट की बीमारियों में कारगर
पीएयू के खेती विशेषज्ञ डॉ. जीएस औलख बताते हैं कि काली गाजर कैंसर से लेकर पेट की तमाम बीमारियों में दवा के रूप में काम करती है।