बख्तावर सिंह हर बार जीते, धाेखे से हारे
मध्यप्रदेश के धार जिले के बख्तावरसिंह ने सिपाहियों के साथ भोपावर छावनी जाकर आग लगा दी और अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया।
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Publish Date: Thu, 14 Aug 2014 03:55:42 PM (IST)
Updated Date: Fri, 15 Aug 2014 04:00:54 AM (IST)
बख्तावर सिंह अमझेरा (धार)। डलहौजी की हड़प नीति और अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ सन 1857 में झांसी-ग्वालियर, उत्तरप्रदेश के विद्रोह की हवा मालवा में भी आ गई। धार से 30 किमी दूर अमझेरा में तब बख्तावरसिंह जी का राज्य था। यहां फौजी इकट्ठा हो गए। राजा ने सिपाहियों के साथ भोपावर छावनी जाकर आग लगा दी और यहां से अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया। इस छावनी पर कब्जा करके सारा धन व हथियार लूट लिए।
सैकड़ों अंग्रेजों को मारा
10 अक्टूबर1857 को भोपावर छावनी पर पुन: हमला करके छावनी कब्जे में कर ली व 11 अक्टूबर को मालवा भील पलटन के सैनिक मुख्यालय सरदारपुर पर भी भीषण हमला करके तीन घंटे की घमासान लड़ाई के बाद यहां भी कब्जा कर लिया।
उन्होंने मानपुर-गुजरी ब्रिटिश सैन्य छावनी पर कब्जा करके कमांडर कर्नल लिंडस्ले एवं विशेष तोपों के साथ तैनात कैप्टन केन्टीज एवं अश्वारोही सेना के प्रभारी जनरल क्लार्क को पराजित कर सैकड़ों ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
धोखे से किया गिरफ्तार
आगे उन्होंने मण्डलेश्वर छावनी पर चौतरफा आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया। क्रांतिकारियों के सम्मुख हथियार डालकर कैप्टन केन्टीज एवं जनरल क्लार्क महू भाग निकले। बाद में संधिवार्ता के बहाने धोखे से लालगढ़ से बुलवाकर तिरला के पास उन्हें गिरफ्तार कर महू जेल में डाल दिया गया।
कहा जाता है कि ब्रिटिश सेना के ए जी जी राबर्ट हेमिल्टन ने महाराजा को असीरगढ़ के किले में कैद की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में इसे बदलकर फांसी की सजा कर दिया। 10 फरवरी 1858 को प्रात: नौ बजे इन्दौर में उन्हें फांसी दी गई।