माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमे पर फैसली की घड़ी बेहद करीब है। इस पूरे प्रकरण की सबसे अहम घटना 1 फरवरी 1986 को ताला खुलना था। फैजाबाद के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट जज कृष्ण मोहन पांडेय ने फैजाबाद प्रशासन को राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश जारी किया था, वहां भक्त रामलला के दर्शन और पूजा-अर्चना कर सकें, लेकिन राम जन्मभूमि का ताला खोलने का ऑर्डर देने के कारण जज केएम पांडेय की उच्च न्यायालय का प्रमोशन रुक गया था। करीब एक वर्ष तक मामला लटका रहा, इसके बाद केंद्र में सरकार बदली और दोबारा उनके प्रमोशन की फाइल मंजूर हुई, तब कही वो हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने थे।
जस्टिस पांडेय फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज थे। बाद में वरिष्ठताक्रम को देखते हुए उन्हें हाई कोर्ट जज नियुक्त करने की सिफारिश हुई थी, लेकिन, 1988 से लेकर जनवरी 1991 तक उनका प्रमोशन नहीं हुआ। 13 सितंबर, 1990 को विश्व हिंदू परिषद (VHP) अधिवक्ता संघ की ओर से महासचिव हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की और जस्टिस पांडेय के हाई कोर्ट में प्रमोशन का आदेश मांगा।
मामले में जैन के अलावा 10 अन्य वकील भी याचिकाकर्ता थे। याचिका में स्पष्ट रूप से आरोप लगाया गया था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने फाइल पर एक नोट लिख कर जस्टिस पांडेय को हाई कोर्ट जज बनाने पर आपत्ति की थी। यही नहीं, मुलायम सिंह ने इसकी सिफारिश करने से भी इन्कार कर दिया था।
याचिका में मुलायम सिंह यादव के इस कथित नोट को शब्दशः कोट करने का दावा है। मुलायम ने लिखा था, "पांडेय जी सुलझे हुए ईमानदार तथा कर्मठ जज हैं। फिर भी 1986 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने का आदेश देकर उन्होंने सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा की थी, इसलिए मैं उनके नाम की सिफारिश नहीं करता।"
याचिका में जस्टिस पांडेय के प्रमोशन की मांग करते हुए कहा गया था कि यूपी सरकार ने 15 लोगों का नाम केंद्र को भेजा था, जिसमें मुख्यमंत्री का लिखा उक्त कथित नोट लगा हुआ था। केंद्रीय कैबिनेट ने वह सूची विचार के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भेजी। सीजेआई ने उसमें से 7 नामों को मंजूरी दी, जिसमें जस्टिस पांडेय का नाम भी शामिल था। लेकिन, केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने सीजेआई की ओर से सूची में मंजूर कर भेजे गए 7 नामों में से 6 को नियुक्ति की मंजूरी दी और जस्टिस पांडेय का नाम रोक लिया। बाद में उनसे कनिष्ठ जज आरके अग्रवाल को हाई कोर्ट प्रमोट किया गया।
उस समय केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी। याचिका के अनुसार, कई बार जस्टिस पांडेय की उच्च न्यायालय प्रमोशन की सिफारिश हुई, लेकिन उनका नाम लटका रहा। यह याचिका लंबित थी कि तभी केंद्र में सरकार बदल गई। चंद्रशेखर की सरकार आई, जिसमें सुब्रह्मण्यम स्वामी कानून मंत्री बने। स्वामी ने जस्टिस पांडेय को इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज नियुक्त करने को मंजूरी दी।
इसके बाद 24 जनवरी, 1991 को जस्टिस पांडेय इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज बने। एक महीने के अंदर उनका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। वहां 4 साल रहने के बाद 28 मार्च, 1994 को वे रिटायर हुए।
जस्टिस पांडेय का हो चुका निधन
केएम पांडेय का अब निधन हो चुका है। उनके बेटे रमेश पांडेय बताते हैं, 'एक दिन तत्कालीन कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी का फोन पिताजी को आया। स्वामी ने कहा कि आई वांट टु डू जस्टिस टु द जस्टिस।' इसके बाद उनके पिता का प्रमोशन हो गया। तब उनके पिता उत्तर प्रदेश ट्रांसपोर्ट अपीलाट ट्रिब्यूनल के चेयरमैन थे।