Ayodhya Verdict Highlights : देश के सबसे चर्चित रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का अधिकार बताया है। शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज है और सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को नियम बनाने का आदेश भी दिए गए हैं। इस तरह साफ हो गया है कि अयोध्या में ही राम मंदिर बनेगा। पढ़िए फैसले की बड़ी बातें -
- शिया पक्ष का दावा खारिज कर दिया गया है। निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज।
- विवादित जमीन पर अंदरूनी हिस्से में मुस्लिमों की नमाज खत्म होने का सबूत नहीं
- हिंदू 1856-57 से पहले अंदर पूजा करते थे लेकिन अंग्रेजों द्वारा रोकने पर बाहर चबूतरे की पूजा करने लगे।
- 1856-57 तक में इस बात का जिक्र नहीं मिलता की वहां नमाज पढ़ी जा रही थी।
- रामलला ने एतिहासिक पुराणों के तथ्य रखे और उसमें सीता रसोई के अलावा राम चबूतरे का जिक्र है जिसकी पुराणों से पुष्टि होती है। इससे यह भी पता लगता है कि हिंदू वहां परिक्रमा किया करते थे।
- हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं इसका किसी ने भी इस बात को खारिज नहीं किया है।
- बाबरी मस्जिद खाली स्थान पर नहीं बनी थी और जिस जगह पर बनी थी वो इस्लामिक नहीं थी उसके नीचे एक विशाल संरचन मिली थी।
- पुरातत्व विभाग की खुदाई में जो चीजें मिली थीं उसे नकारा नहीं जा सकता। हाईकोर्ट का फैसला खारिज करने की मांग को गलत करार दिया है। मामले में इससे पहले आया हाईकोर्ट का फैसला पारदर्शी साबित हुआ है।
- निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज जिसमें उन्होंने पूजा का अधिकार मांगा था।
- मस्जिद 1528 में बनी है इससे फर्क नहीं पड़ता। 22 दिसंबर 1949 को मूर्तियां यहां रखी गईं। यह जमीन नजूल की है और सरकारी है।
बता दें, इस मामले में शुरू में 4 केस दर्ज थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ने 30 सितंबर 2010 को इन्हीं 4 याचिकाओं पर अपना निर्णय सुनाया था। पहला केस गोपाल सिंह विशारद का था जिन्होंने 1950 में राम जन्मभूमि पर रिसीवर नियुक्त होने के बाद पूजा और दर्शन का अधिकार मांगा था। इस केस की शुरुआती सुनवाई में ही कोर्ट ने रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने का आदेश जारी कर दिया था और वहां यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। यही व्यवस्था अब तक चल रही है।
दूसरा केस निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में दाखिल किया था। निर्मोही अखाड़ा ने रामलला के सेवादार होने का दावा कोर्ट के समक्ष किया था और पूजा मैनेजमेंट और मौके का कब्जा मांगा था। तीसरा केस 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया था। यह मालिकाना हक का पहला मुकदमा था। इस केस में पूरी जमीन को वक्फ की संपत्ति बताते हुए विवादित ढांचे को मस्जिद करार दिए जाने की मांग हुई थी। चौथा केस भगवान श्रीराम विराजमान और जन्मस्थान की ओर से निकट मित्र देवकीनंदन अग्रवाल ने दायर किया था। इस केस में जन्मस्थान को अलग से पक्षकार बनाया गया था।
देवकीनंदन ने अपनी इस याचिका में विवादित भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान बताते हुए भगवान राम विराजमान को पूरी जमीन का मालिक घोषित करने की मांग रखी गई। इस बीच, 1950 में रामचंद्र परमहंस दास ने भी एक केस दाखिल कर दिया जिसमें पूजा दर्शन का अधिकार मांगा गया था। हालांकि बाद में उन्होंने यह मुकदमा वापस ले लिया गया।