ओलिंपिक में देश के लिए पदक जीतने के बाद बॉक्सर विजेंदर सिंह ने अब देश में प्रोफेशनल बॉक्सिंग का एक नया अध्याय शुरू किया है। लेकिन एक दौर वह भी था जब पंजाब पुलिस ने उन पर ड्रग्स लेने और उसके कारोबार से जुड़े होने के आरोप लगाए थे। इस मुश्किल दौर से बाहर आने और नेशनल ट्रेनिंग कैंप की स्थिति पर खुलासा उन्हीं के शब्दों में।
कैसे ड्रग्स के आरोपों से बाहर निकले विजेंदर
विजेंदर तब तक नहीं बोलते हैं जब तक कि उनके पास बोलने के लिए कुछ खास नहीं होता। यह स्वभाव रखने वाला यह खिलाड़ी कहता है, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए उसे कोई खास ट्रेनिंग या रणनीति नहीं दी गई थी। वे बताते हैं, 'मैंने सभी चीजों के बारे में खुद ही सोचा, खुद ही अपनी योजना बनाई।'
लेकिन तब भी एक बात है जिस पर भिवानी का यह बॉक्सर और भिवानी के ही उसके कोच जगदीश सहमत हैं कि उच्च स्तरीय नेशनल ट्रेनिंग कैंप की स्थिति बहुत ही खराब है।
अखिल कहते हैं, 'जब मैंने नेशनल कैंप ज्वाइन किया तो मैं ट्रेनिंग के तौर तरीकों और न्यूट्रीशन के बारे में कुछ नहीं जानता था। मैं भी दूसरों की तरह ही आधा पढ़ा-लिखा, गांव के गरीब परिवार का लड़का था। मिसाल के लिए 2007 तक हम लोग रोजाना करीब एक लीटर कोक पी जाते थे और एक्सरसाइज करते थे। किसी ने भी हमें यह नहीं बताया कि एक्सरसाइज किस तरह करना है और बस कुछ बेसिक एक्सरसाइज भर सिखाई जो कभी हमने स्कूल के दिनों में सीखी थी।'
विजेंदर का प्रोफेशन बॉक्सिंग की ओर मुड़ना इसलिए हुआ क्योंकि वे अपनी सुनने वाले व्यक्ति थे और वे अपने करियर की दिशा और दशा के लिए किसी और को दोषी नहीं ठहराते हैं। चीजें बहुत सरल हैं।
विजेंदर कहते हैं, 'अपने कोच को पैसा दो, ठीक तरह से ट्रेनिंग लो, लड़ाई लड़ो, अपना पैसा लो और घर जाओ। अब इसमें कोई चक्कर नहीं है कि यहां से अनुमति लो या वहां से प्रमाण-पत्र लो, जो लोग सत्ता में हैं उनकी चापलूसी करो, आपके अपने हक के पैसे के लिए लोगों की खुशामद करो। हर चीजे के लिए हमेशा मांगते ही रहो।'
'आप मुझसे पूछते हैं कि सिस्टम में क्या खराबी है। बताना बहुत मुश्किल है क्योंकि भारत में जिस तरह से खेलों का ढांचा है उसमें कुछ भी सिस्टेमेटिक नहीं है।'
वर्ष 2013 में इंडियन बॉक्सिंग फेडरेशन द्वारा लगाए गए बैन से निराश होने के बाद विजेंदर ने एक और चुनौती का सामना किया। यह दूसरी चुनौती न केवल उनका करियर बिगाड़ सकती थी बल्कि उस जिंदगी को भी तबाह कर सकती थी जो उन्होंने खुद बनाई थी।
मार्च में विजेंदर मुंबई आ गए ताकि कुछ प्रमोशनल काम कर सकें। एयरपोर्ट पर तीन दोस्त उन्हें कार में छोड़ने आए। इनमें बॉक्सर दिनेश और पंजाब ।से एक और बॉक्सर राम सिंह भी थे। योजना यही थी कि उन्हें छोड़ने के बाद दिनेश और राम सिंह पटियाला लौट जाएंगे।
विजेंदर ने मुंबई में दो दिन बिताए और फिर गुड़गांव स्थित अपने घर आ गए। अगले दिन उन्होंने टीवी पर देखा कि पुलिस का दावा है कि विजेंदर की कार पंजाब के एक बड़े ड्रग स्मगलर के घर के बाहर खड़ी थी। उन्होंने राम सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था। रामसिंह ने कबूल किया था कि वह वह इस ड्रग्स व्यापार का हिस्सा था और पुलिस से यह भी कहा कि ड्रग्स स्मगलर को विजेंदर भी जानता है।
यह ऑपरेशन पंजाब पुलिस की निगरानी में चल रहा था और उसने मीडियाकर्मियों को जानकारी दी कि विजेंदर और रामसिंह ने 12 मर्तबा हेरोइन का सेवन किया है।
'12 मर्तबा" विजेंदर हंसते हुए बताते हैं। वे कहते हैं, 'मुझे तो हैरत है कि कोई इसे गिन भी रहा था। क्या पुलिस उस समय मेरे साथ बैठी गिन रही थी 1...2...3...?'
दिनेश का कहना था कि यह पूरा वाकया एक षडयंत्र था। किसी बड़े नाम को फांसकर इस केस की तरफ सभी का ध्यान खींचने की कोशिश थी।
दिनेश का कहना है, 'यहां तक कि कार भी जिकरापुर में नहीं थी, जहां से पुलिस ने इसे जब्त करने का दावा किया था। मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं रामसिंह के साथ पटियाला में था जबकि किसी ने हमें फोन किया और कहा कि कार को फलां जगह ले आओ। उसने साथ में मुझे भी आने को कहा।'
जब वे उस जगह पहुंचे जो कि पटियाला स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से कुछ ही दूरी पर थी तो उन्हें दो पुलिसकर्मी मिले।
दिनेश कहते हैं, 'उन्होंने मुझे कार से उतरने को कहा और फिर वे राम सिंह को साथ लेकर चले गए।'
विजेंदर के भाई मनोज का कहते हैं कि कार में जीपीएस था और जब पुलिस ने विजेंदर के खिलाफ बयान दिया तो उसने सबसे पहले जीपीएस रिकॉर्ड की मांग की। लेकिन तब तक रिकॉर्ड साफ कर दिए गए थे और कार से जीपीएस भी हटा लिया गया था।
पुलिस ने तब मांग की थी कि विजेंदर का डोप टेस्ट हो। विजेंदर ने मना कर दिया और कहा था कि अगर खिलाड़ियों में डोप कंट्रोल के लिए काम करने वाले शीर्ष एजेंसी नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी (नाडा) यह टेस्ट करती है तो वे तैयार होंगे। नाडा की जांच में वे निर्दोष साबित हुए।
मनोज ने इस स्थिति को संभालने का जिम्मा उठाया। उसने वकील जुटाए, जांच अधिकारी से लड़ाई लड़ी और समर्थन जुटाया। उसने विजेंदर को कहा कि वह अपने गुड़गांव वाले घर में ही रहे।
विजेंदर कहते हैं, 'अगले एक महीने तक मैंने कुछ नहीं किया बस घर पर ही बैठा रहा। मैंने पत्रकारों से कोई बात नहीं की। मैंने सोचा कि उन्हें किसी भी बात का सबूत देने की कोई जरूरत नहीं है। अगर मैं दोषी हूं तो सबके सामने आ जाएगा। अगर मैं दोषी नहीं हूं तो भी सबके सामने आ जाएगा। अब मैं उस समय के बारे में सोचता हूं तो घर पर बिताया वह शानदार समय था। मैंने ठीक से खाना खाया, जीभर कर सोया और खूब फिल्में देखीं।'
आखिरकर पुलिस ने विजेंदर के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया और कोई आरोप नहीं लगाया।
विजेंदर बताते हैं, 'इस घटना के बाद मैं और पक्का हो गया था। इसने मुझ पर गहरा असर छोड़ा कि मेरी बॉक्सिंग कहीं नहीं गई है। मैं कुछ चीजों को बदलना चाहता था और अब ज्यादा स्पष्ट होकर अपनी बात कहना चाहता था।'
अब वह अपनी आरामदायक खोल से बाहर निकलना चाहता था। उस खोल से जिसमें वह एक सेलिब्रिटी था, दोस्तों से घिरा रहता था और जहां उसे जो भी चाहिए था वह तुरंत ही मिल जाया करता था।
उसने देखा कि पुराने दिनों के उसके बॉक्सिंग के साथी खेल से दूर जा चुके हैं। नेशनल कैंप की कमजोर ट्रेनिंग के कारण वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई पदक नहीं जीत सके और फिर लंबी चलने वाली प्रशासनिक प्रक्रियाओं ने उनके लिए किसी भी स्पर्धा में भागीदारी ही असंभव बना दी। तब भिवानी के लड़कों ने बॉक्सिंग छोड़ दी। केवल विजेंदर को छोड़कर। वे मैदान में टिके हैं।
- जगरनॉट बुक ऐप पर उपलब्ध रुद्रनेल सेनगुप्ता की किताब 'रिंगसाइड विथ विजेंदर' से साभार। सौजन्यः 'मिड-डे'