मां होना ही अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी है, उस पर यदि वह अकेले ही बच्चे को पाल रही हो तो उसकी मुश्किलों और चुनौतियों की एक लंबी फेहरिस्त बन जाती है। एक बच्चे की परवरिश माता-पिता दोनों की ही जिम्मेदारी है और दोनों के लिए ही आनंद भी, लेकिन यदि किसी भी वजह से मां को अकेले ही बच्चे की परवरिश करनी पड़े तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने की तैयारी करें।
आर्थिक संतुलन साधें
स्त्री चाहे तलाक की वजह से अकेली हुई हो या फिर पति की मौत या किसी और वजह से, उसके सामने पहली और सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक होती है। जहां दो लोग मिलकर एक बच्चे की जिम्मेदारी निभाते थे, अब एक ही को उसकी जरूरत और इच्छाएं पूरी करनी होगी। यदि आपने अकेले ने ही एक बच्चे को गोद लिया है तब भी मुश्किलें कम नहीं होती हैं। यदि मामला अलग रहने का हो तब भी अदालत से उसे ज्यादा मदद नहीं मिल पाती है। उसे हमेशा तनख्वाह और बचत की तुलना में बच्चों की मांग और जरूरत ज्यादा लगती है।
आपको आर्थिक सलाहकार की मदद लेनी चाहिए। याद रखें कि आपके बच्चे को सबसे ज्यादा आपके प्यार की जरूरत है जो आपके पास अकूत है। अपने बच्चे को प्यार से सराबोर रखें। उसे और स्वयं को भी इस अपराध बोध से बाहर रखें कि आप उसे वो सारी भौतिकता नहीं दे पा रहे हैं, जिसकी उन्हें ख्वाहिश है।
अलगाव से बचाव के लिए कोशिश
अक्सर अकेली मां की यह शिकायत रहती है कि वे अपने बच्चों की परवरिश में इतनी उलझी रहती हैं, इतनी जिम्मेदारी उनके पास हुआ करती है कि वे न तो दोस्तों को समय दे पाती हैं और न ही अपने जीवन में किसी साथी के बारे में सोच पाती हैं। जो महिलाएं काम करती हैं उनकी दुविधा तो और भी ज्यादा होती है। वे कहती हैं कि दफ्तर के घंटों के बाद यदि वे अपने बच्चों को घर में अकेला छोड़ती हैं तो उन्हें यह बहुत तकलीफदेह लगता है। इसी तरह अपने बच्चों के लिए बेबी सीटर रखकर बच्चों को अकेला छोड़कर जाने का विचार तक असंभव-सा लगता है।
आपको दोस्ती और प्रेरणा की जरूरत होती है, तो यह बहुत छोटा मामला है। अपने आसपास के माहौल को देखते हुए कुछ वक्त आप अपने दोस्तों के साथ भी बिताएं, बच्चों के लिए कुछ व्यवस्था करके, जैसे कुछ वक्त के लिए अपनी मां या दादी या फिर मौसी के साथ उन्हें समय बिताने दें। कम से कम एक महीने में एक बार तो आप अपने दोस्तों या फिर अपने बच्चों के दोस्तों के माता-पिता के साथ ही डिनर या फिर पार्टी का हिस्सा बनें और जानें कि आसपास की दुनिया में और क्या हो रहा है।
निर्णय लेने का दबाव
बच्चों की परवरिश एक मुश्किल मुद्दा है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे कई अलग-अलग तरह की मुश्किलें आने लगती है। जो माता-पिता साथ-साथ रहते हैं, कम से कम वे उन समस्याओं पर एक-दूसरे से सलाह मशविरा ले सकते हैं, लेकिन यदि अकेली मां है तो उसे इस मुश्किल से भी दो-चार होना पड़ता है। चाहे फैसले बहुत बड़े नहीं होते हैं जैसे बच्चे को किस स्कूल में जाना चाहिए या उसे क्या विषय पढ़ना चाहिए? कौन से दोस्त अच्छे हैं और कब बच्चा परिपक्व हो गया है जैसे निर्णय मां को अकेले ही लेना होता है। इस तरह का भावनात्मक दबाव मां को खासी मुश्किल में डाल देता है।
इसके लिए बेहतर होगा कि आप पेरेंटिग के लिए सलाह लें। बस इस बात का ध्यान रखें कि जिससे भी सलाह लें उसे आपकी पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में ठीक-ठाक जानकारी हो। फिर अंतिम निर्णय स्वयं की करें।
अपराध-बोध से बचें
यदि आप अपने किसी भी तरह के निर्णय को लेकर पछता रहे हैं जिसकी वजह से आज आपकी पारिवारिक स्थिति ऐसी है तो यह अपराध बोध बहुत भारी होगा। उस अपराध बोध को कोई भी आर्थिक उपलब्धि मिटा नहीं सकती है। साथ में गुजारे समय का अपराध बोध और उन सारी चीजों का अपराध बोध जो आप अपनी हाल की स्थिति में नहीं कर सकते हैं यह एक अकेली मां को बहुत तकलीफ देता है। इसके साथ ही अकेली मां के बच्चे बड़े होकर दुनिया के प्रति क्या नजरिया रखेंगे यह विचार भी चिंतित करता है।
यदि आपका अकेले रह जाना किसी खराब निर्णय की वजह से है तो इससे सबक लें और आगे बढ़ें। हम सब गलतियां करते हैं एक बार की गई गलती हमें भविष्य के कई खतरों से बचा सकती है।