आजादी से पहले के भारत में अधिक जनसंख्या को विकास का पैमाना माना जाता है। यह माना जाता था कि अच्छी उपज, श्रम की उपलब्धता, अच्छे प्रशासन और शांतिपूर्ण स्थितियों के चलते ही जनसंख्या फलती-फूलती है। जनसंख्या का कम होना तब बुरा माना जाता था। मगर समय के साथ इस पर विचार होने लगा कि क्या भारत इतनी बड़ी आबादी को संभालने में सक्षम है। समय-समय पर आए अकाल ने भी इस चिंता की तरफ सभी का ध्यान खींचा। 1798 में माल्थस ने भी कहा था कि अगर जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया जाता है तो वह हमेशा उपलब्ध खाद्य उत्पादन की क्षमता से ज्यादा आगेनिकल जाती है।
कभी 1888 में भारत के वायसराय लॉर्ड डफरिन ने कहा था कि भारत में कृषि उत्पादन कम है और अकाल इसलिए पैदा होता है क्योंकि यहां जनसंख्या बहुत ज्यादा है और लोग तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद 1871 से 1941 तक भारत की जनसंख्या की औसत वृद्धि दर 0.60 प्रतिशत ही रही, जबकि इस दौरान दुनिया का औसत 0.69 प्रतिशत था। 20 वीं सदी के पहले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही। 1931 की जनगणना में जब सामने आया कि भारत में 1921 से 1931 के बीच प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की दर से जनसंख्या बढ़ी है तो सभी चौंक गए। 1951 के बाद यह दर करीब 2 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई थी।
भारत की आजादी से लेकर 1964 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु तक भारत में कम उत्पादन को बढ़ाकर बढ़ती आबादी की जरूरतों की पूर्ति का संतुलन साधने की कोशिश की। 1965 में मानसूनी बारिश नहीं हुई और भारत का खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित हुआ। रिपोट्र्स थीं कि भारत के कुछ हिस्सों में जहां हालात खराब हैं वहां लोग भूखे मर रहे हैं। तब लाल बहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने अमेरिका से मदद की गुहार की।
अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने तब कहा था कि मैं उन देशों को मदद नहीं दे सकता हूं जो अपनी ही बढ़ती आबादी के संकट से निपटने में नाकाम हैं। तब श्रीमती गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को आश्वस्त किया था कि भारत अपनी बढ़ती आबादी पर नियंत्रण का प्रयास करेगा। इस आश्वासन के बाद ही अमेरिका ने भारत को खाद्यान्न मदद दी थी। इसके बाद के वर्षों में अच्छी बारिश और 'हरित क्रांति' के बूते भारत ने अपने यहां उत्पादन बढ़ाया। भारत में गेहूं और चावल की उच्च पैदावार देने वाली किस्मों के जरिए अपने यहां उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया।
1970 के दशक में यह लगने लगा था कि भारत ने खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाकर बढ़ती जनसंख्या का समाधान ढूंढ लिया है। तब यह कहा जाने लगा था कि भारत की समस्या बढ़ती आबादी नहीं बल्कि कम उत्पादन था। इसके बाद भी जनसंख्या पर मगर बातें होती रहीं और फिर चुनाव में जीतकर आने के बाद इंदिरा गांधी ने भारत का प्रधानमंत्री बनने पर 'स्वास्थ्य मंत्रालय' का नाम बदलकर 'स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन मंत्रालय' कर दिया था।
आपातकाल के समय सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम को बहुत सख्ती से अपनाया। जबरन लोगों की नसबंदी कीगई। इस सख्ती से लोग बेहद नाराज हुए। 1977 में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं और यह माना गया कि परिवार नियोजन की सख्ती की इस हार में भूमिका रही। विश्लेषकों ने माना कि जनता से परिवार नियोजन की जरूरत को अस्वीकार कर दिया है।
1980 और 1990 के दशक में भी बढ़ती जनसंख्या पर बात हुई लेकिन ज्यादातर राजनेताओं ने इस पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा। भारत में ग्लोबलाइजेशन के बाद जनसंख्या का मुद्दा दबा रहा लेकिन अब जबकि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बनने जा रहा है तो जनसंख्या की चुनौतियों पर फिर से चर्चा हो रही है।