सींकिया काया का हवा-हवाई बद्री चौबे एक सिद्ध मालिशवाला यानी मसाजर बन गया। उसे देखकर कोई बमुश्किल यकीन कर पाता कि उसकी उंगलियां जब किसी के जिस्म पर फिरती हैं तो एक जादू कर जाती हैं, चाहे वह दोहरी काया का कोई मोटा थुलथुला हो या फिर इकहरी काया का कोई अस्थिपंजर। बचपन से ही उससे एक टोटका कराया जाता था, कहते हैं कि वह उल्टा पैदा हुआ था पैर की तरफ से। लोगों की धारणा थी कि उल्टा पैदा होनेवाला किसी की कमर या पीठ में चोर घुसे आदमी को लतिया दे तो चोर निकल जाता है। वह बचपन से ही लोगों को लतियाने का कार्यक्रम चलाता आ रहा था।
मामूली पढ़ाई-लिखाई के बाद उसके पिता सुदाम चौबे ने उसके तीन बड़े भाइयों की तरह पोथी-पतरा थमा दिया पुरोहिताई करने के लिए। चौबे जी को लगा था कि उसकी पुश्तैनी पंडिताई का निर्वाह बद्री जरूर संभाल लेगा। लेकिन अपने तीन बड़े भाइयों की तरह उसने भी पुश्तैनी खटराग को नकार दिया और जैसे वे तीनों पोथी-पतरा पटक कर दूसरे शहरों में जाकर दूसरी तरह के कामों में लग गए, वह भी अपना शहर पटना छोड़कर टाटा नगर में आ गया।
तीनों भाइयों की तरह उसे भी लगा कि पुश्तैनी पुरोहिताई, जो बाबूजी कर रहे हैं, एक प्रकार की भिखमंगी है। बेली रोड़, एक्जीबिशन रोड़, अशोक राजपथ आदि की ढाई-तीन सौ दुकानों में रोज सबेरे घूम-घूमकर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति पर फूल चढ़ाना, अगरबत्ती जलाना या आरती दिखाना और दुकानदार के माथे पर तिलक लगाना, बदले में किसी से रोजाना, किसी से माहवारी भीख जैसी वसूली करना चौबे जी को खूब रास आ रहा था, और उनका मानना था कि इससे इज्जतदार, पवित्र और आरामदायक रोजगार दूसरा कुछ नहीं हो सकता। काश! चौबे जी का यह शास्त्रीय अन्तर्ज्ञान उनके बेटों तक भी संप्रेषित हो पाता। बेटों ने आरामदायक शब्द के चेहरे पर हरामदायक का पेंट चढ़ा दिया।
बद्री जब टाटा आ गया तो अपने लिए काम ढूंढने के बारे में उसका नजरिया बिल्कुल साफ था। वह उसी काम से जुड़ना चाहता था जिसका सरोकार सिर्फ महिलाओं से हो। वह ऐसा क्यों चाहता था, इसकी कोई खास वजह उसके मन में साफ नहीं थी। बस मोटे तौर पर उसे लगता था कि महिलाएं उदार, दयालु, ममतामयी, स्नेहिल और प्रियदर्शिनी होती हैं तथा उन्हें देखते हुए काम करने में ऊब, थकान और नीरसता का असर काफी कम हो जाता है।
उसने लेडीज टेलरिंग हाउस, लेडीज गारमेन्ट्स, ज्वेलरी हाउस, लेडीज ब्यूटी पार्लर आदि में काम ढूंढना शुरू कर दिया। ब्यूटी पार्लर उसकी पहली पसंद था, मगर यहां अवरोध यह था कि इनमें प्राय: महिलाएं ही काम करती हैं। उसने शहर के विभिन्न पार्लरों में जा-जाकर काम की तलाश शुरू कर दी, यह सोचकर कि शायद कोई ऐसा बोल्ड पार्लर हो जो पुरुषों द्वारा चलाया जा रहा हो। मगर, कोई ऐसा पार्लर नहीं मिला जो घोषित रूप से स्त्रियों के लिए पुरुषकर्मियों की सेवा पर निभर्र हो।
पूरे शहर में सिर्फ एक ऐसा पार्लर था, जिसमें हेयर कट करने का काम पुरुषों द्वारा किया जा रहा था, बाकी काम फेशियल, मसाज, पेडिक्योर आदि के लिए महिलाएं नियुक्त थीं। उसका नाम था सोहनी हेयरकट मसाज एंड मेकअप पार्लर। यह बहुत महंगा और नम्बर एक की श्रेणी में शुमार था। यहां उसे गार्ड कम अटेंडर का काम मिल गया। समय पर दुकान का शटर उठाना, गिराना, फर्श का झाड़ू-पोछा, फर्नीचरों की साफ-सफाई और श्रृंगार तख्त के उपकरणों और कॉस्मेटिक्स की देखभाल करना और यह सब करते हुए दरवाजे पर सिर पर कलगी लगे साफा बांधकर सिक्युरिटी की वर्दी में तैनात हो जाना, ये सारे अनिवार्य काम उसके खाते में डाल दिए गए।
वह वहां बहुत वफादारी और मुस्तैदी से काम करने लगा। लंबी-लंबी कारें दुकान के सामने रुकतीं और उसके पिछले दरवाजे से भव्य व आभिजात्य महिलाएं उतरतीं, वह सावधान की मुद्रा में आकर सलामी बजाता और उनके अंदर जाने के लिए दरवाजा खोल देता। पार्लर की मालकिन सोहनी उसके काम से बहुत प्रभावित रहने लगीं। उसे कार चलाने की ट्रेनिंग दिलवाकर ड्राइवर का काम भी उसी से लेने लगी।
सोहनी को एक बार एक हल्के और प्रफुल्लित मूड में देख बद्री ने यह बताने का हौसला कर लिया कि उसके पैर लगा देने से लोगों की पीठ और कमर का दर्द ठीक हो जाता है, ऐसा उसके शहर में लोग मानते रहे हैं। सोहनी को इन टोटकों में विश्वास नहीं था, लेकिन उसकी मासूम खुशफहमी को वह निरस्त नहीं करना चाहती थी। उसने कहा, 'तो ऐसा करो बद्री, तुम मालिश करने की ट्रेनिंग ले लो, तुम्हारे हाथों में और भी इल्म आ जाएंगे और कुछ अन्य किस्म की राहत देने में भी तुम सक्षम हो जाओगे।"
'आपने तो मेरे मन की बात कर दी मैडम, वास्तव में मैं ऐसा ही चाहता रहा हूं। आप मुझे ट्रेनिंग दिलवा दें तो मैं धन्य धन्य हो जाऊं। मैं मालिश ही नहीं हेयर कट भी सीखना चाहता हूं।"
'ठीक है, मुझे खुशी है कि इस काम में तुम्हें रुचि है। मैं न सिर्फ तुम्हें ट्रेनिंग दिलवा दूंगी, बल्कि तुम्हें उस ट्रेनिंग को कारगर करने का मौका भी दूंगी। मैं एक जेन्टहेयरकट मसाज एंड मेकअप पार्लर भी खोलने जा रही हूं। तुम वहां काम करोगे और प्रभार भी संभालोगे।"
बद्री चौबे की देह के पोर-पोर से जैसे कृतज्ञता के पराग झरने लगे। उसे लगा मानो, खुशी से वह हवा में उड़ने लगेगा और पटना के आकाश के ऊपर से गुजरते हुए दुकान दर दुकान चक्कर लगाते अपने बापू को आवाज लगाकर कहेगा, 'मेरी चिन्ता मत करना बापू, मैं एक बहुत अच्छे काम में लग गया हूं। अब कभी मुझसे उम्मीद मत करना कि धूप-दीप जलाने और चंदन घिसने वाले तुम्हारे काम में मैं हाथ बंटाने आऊंगा।"
बद्री ने सोहनी मैडम की खिदमत में अपनी पूरी वफादारी लगाते हुए मसाज और हेयरकट की ट्रेनिंग पूरी कर ली। इस बीच सोहनी जेन्ट्स हेयरकट मसाज एंड मेकअप पार्लर भी खोल दिया गया। बद्री उसमें काम भी करने लगा और प्रभार भी संभालने लगा। दो कारीगर यहां और भी बहाल कर दिए गए। धीरे-धीरे पार्लर चर्चा में आ गया और उसके साथ ही बद्री भी। बद्री की मेहनत, लगन, ईमानदारी और प्रतिबद्धता के मिश्रण से उसका काम क्रमश: निखरने लगा।
दुकान में न सिर्फ शौकिया मालिश कराने वाले आने लगे बल्कि वे लोग भी जो सिर में, पीठ में, कमर में या ठेहुने आदि में किसी न किसी दर्द से पीड़ित होते। बद्री एक फिजियोथेरेपेस्टि की तरह मालिश का उपचार देकर काफी हद तक राहत पहुंचा देता था। प्रशिक्षण लेकर उसमें यह इल्म आ चुका था कि कौन सी नब्ज कितना दबाना है, कौन सा आर्गन या स्पॉट को कितना छेड़ना है और किन मांसपेशियों को किस तरह किस तेल या किस क्रीम से मालिश देकर आराम पहुंचाना है।
सोहनी मैडम तो मानो उसे मिल रही सार्वजनिक मान्यता से निहाल-निहाल हो जा रही थी। यह जेन्ट्स पार्लर इतना ज्यादा सफल सिद्ध होगा, उसने नहीं सोचा था। जाहिर है, इसका पूरा श्रेय बद्री को ही दिया जा रहा था। सोहनी ने तो पहले ही उसका स्थान ऊंचा कर दिया था, अब उसे और भी महत्व तथा अधिकार देने लग गई। एक बार उसे पटना जाने का मन हो आया। सोहनी ने कहा, 'ठीक है तुम ट्रेन से नहीं कार से जाओ। खुद ड्राइव कर सकते हो तो कर लो, नहीं तो ड्राइवर ले लो। घरवालों के लिए कुछ खरीदारी करना हो तो कंजूसी मत करना। जितने पैसे चाहिए हों, मुझसे मांग लेना।"
जब खुद ही ड्राइव करके कार से वह पटना पहुंचा तो उसके मां-बाप और पास-पड़ोस के लोग उसकी ठाट-बाट देखकर अचंभित रह गए। सबकी जिज्ञासा उसके सामने बिछ गई कि आखिर एक गबदू टाइप के गुलेल लड़के में ऐसी कौन सी काबिलियत आ गई कि रातों-रात इसका नक्शा ही बदल गया। उसने हर पूछने वाले को यह बताने में कोई झिझक महसूस नहीं की कि वह पार्लर में बाल काटने और मसाज करने के काम में बहाल हो गया है। हर सुनने वाले की भंगिमा कसैली हो गई।
सुदाम चौबे को लगा जैसे दीवार से टकराकर अपना माथा फोड़ लें। धिक्कारते हुए कहा उसने, 'अरे खानदान के कलंक, अपनी पुश्तैनी मर्यादित वृत्ति छोड़कर तू गलीज और गर्हित तावेदारी में लग गया। छी: रे अधम बुद्धि, तू कार से चलकर आए या हेलीकॉप्टर से, अगर तूने इस दर्जे का काम करके पैसा कमाया है तो मुझे तुम पर गर्व नहीं हो रहा, शर्म आ रही है।"
'भीख मांगना आपके लिए सबसे मान-सम्मान का काम है तो आप मांगते रहिए। मैं जो कर रहा हूं करता रहूंगा। आपके संबंधी लोहे के कारखाने में काम करें, होटल में कुक का काम करें, अस्पताल में डॉक्टर से लेकर वार्ड ब्वॉय का काम करें, ट्रक या ट्रेन में ड्राइवर का काम करें, कोयला खदान में मलकट्टा का काम करें, नेतागिरी और बनियागिरी करें, इन सबमें इज्जत नहीं जाती और हम मसाजर का काम करें, तो नाक कट जाती है।
लद गया जमाना जब काम जाति के खाने में बंटे हुए थे। अब कपड़े धोने, जूते बेचने, बाल काटने, कपड़े बुनने, फर्नीचर बनाने, पार्लर चलाने, होटल चलाने, मुर्गी, मछली और अंडे बेचने आदि के काम आप पता कर लीजिए किस-किस जाति के लोग कर रहे हैं और उनका क्या रसूख है, क्या कमाई है। घूमते तो हैं आप दुकान दर दुकान। आपको तो मालूम होना चाहिए।" बद्री ने उनकी विप्र बुद्धि को मानो कठघरे में खड़ा कर दिया।
सुदाम निरुत्तर से हो गये। उन्हें चित्त होते देख बद्री की मां को भी चढ़ाई करने का मौका मिल गया, 'आप जिंदगी भर पूजा-पाठ और कर्मकांड के लिए दांत खटखटाते रहे और चंदन रगड़ते रहे, लेकिन एक खपरैल मड़ई और खड़खड़िया सायकिल से आगे नहीं बढ़ सके। अपना बद्री ढाई-तीन साल में ही कार की सवारी करने लगा है, शरम तो आपको आना चाहिए। उल्टे डांट रहे हैं हमरे बुतरू को, जो कर रहा है ठीक कर रहा है। देखिए, हमरे लिए कितना निम्मन साड़ी लाया और आपके लिए धोती कमीज।" सुदाम चौबे का माथा चकरा गया - तो क्या सचमुच वे जीवन भर एक दोयम पाखंड के चक्कर में फंसे रहे? उनके तीनों बेटों ने उससे पिंड छुडाकर, जो किया ठीक ही किया?
अब तक 13 कहानी संग्रह, 3 उपन्यास, 3 नाटक और वैचारिक लेखों के संग्रह सहित 21 पुस्तकें प्रकाशित। राधाकृष्ण पुरस्कार, विजयवर्मा कथा सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित। कुछ कहानियों का टीवी रूपांतरण और नाटकों का आकाशवाणी से प्रसारण भी हुआ।