नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। ठंड के मौसम की शुरुआत हो चुकी है। इससे बच्चों में निमोनिया का खतरा 40 से 50 फीसदी बढ़ जाता है। इसकी सही समय पर पहचान करके इलाज न किया जाए तो जानलेवा भी साबित हो सकता है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में साल में 17 हजार बच्चों की मौत निमोनिया से होती है। जेएएच के बाल एवं शिशु रोग विभाग की ओपीडी में ठंड के समय निमोनिया से पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफा हो जाता है। रोजाना 40 से 50 बच्चे उपचार के लिए पहुंचते हैं। इनमें से चार से पांच बच्चों को भर्ती करने की आवश्यकता पड़ती है।
ठंड के समय मौसम अचानक बदलने से फेफड़ों में होने वाले एक तरह के संक्रमण से सांस लेने में परेशानी होती है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। चिकित्सक इसे ही निमोनिया कहते हैं। अगर निमोनिया के लक्षण बच्चों या बुजुर्गों में दिखें तो तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए। लोगों में जागरूकता लाने के लिए हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। इस बार भी सांस अभियान का आयोजन 12 नवंबर से 28 फरवरी 2025 तक किया जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए गए दस्तक अभियान में निमाेनिया से पीड़ित 228 बच्चे मिले थे। जिनको उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया। डबरा क्षेत्र में 12, भितरवार 35, मुरार 118 व घाटीगांव ब्लाक में 63 बच्चे मिले थे। सबसे ज्यादा बच्चे मुरार ब्लाक में पीड़ित मिले।
निमोनिया की वजह से होने वाली शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में पीसीवी (न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन) के माध्यम से 9 माह तक के बच्चों को अलग-अलग अंतराल पर तीन टीके लगाए जाते हैं। इसके साथ ही निमोनिया के मामलों में कमी लाने सांस अभियान का आयोजन किया जा रहा है। अभियान का लक्ष्य पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मुत्यु को 5.1 प्रति हजार से जीवित जन्म से 3 प्रति हजार जीवित जन्म पर लाना है।
डा.आरके गुप्ता, जिला टीकाकरण अधिकारी