हेल्थ डेस्क, इंदौर (National Stress Awareness Day 2024)। पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा तनाव में रहती हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक हजार बिस्तर अस्पताल के मनोरोग विभाग की ओपीडी के आंकड़े भी इस बात को पुष्ट करते हैं।
ओपीडी में जहां 10 पुरुष उपचार के लिए पहुंचते हैं, वहीं महिलाओं की संख्या 20 से 25 होती है। मनोरोग चिकित्सक का कहना है कि एक साथ कई रोल में फिट होने की ललक, बॉडी इमेज से जूझना, कई हेल्थ समस्याओं से परेशान, परिवार साथ होने पर भी अकेले होने का एहसास, अत्यधिक काम का दबाव, वर्क होम लाइफ बैलेंस जैसे कई मामले महिलाओं परेशान करते हैं।
मनोरोग चिकित्सक का कहना है कि तनाव के कारण महिलाओं को सिर दर्द, पेट की समस्या, थकावट और चिढ़चिढ़ेपन की शिकायत ज्यादा रहती है। इसके साथ ही 25 से 45 आयु वर्ग की महिलाएं ज्यादा तनाव में हैं।
ओपीडी में अगर 80 मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं तो उनमें महिलाओं की संख्या 20 से 25 होती है। कामकाजी महिलाओं को इस बात का तनाव रहता है कि अगर उन्होंने हर जगह खुद को साबित नहीं किया तो लोग उन्हें कमतर समझेंगे।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ महिलाओं के तनाव को लेकर बताती है कि मां बनने के बाद महिलाएं जिम्मेदारियों और प्रेशर से ही नहीं बल्कि तनाव से भी भर जाती हैं।
बच्चे ने खाना खाया या नहीं, उसे अच्छी परवरिश देने, उसकी सुरक्षा, ऐसी कई चीजों को लेकर उनको तनाव रहता है। महिलाओं को अपने संतान की सेहत और सुरक्षा को लेकर जीवनभर तनाव रहता है। वहीं बच्चा छोटा है तो उसकी जिम्मेदारी को लेकर वह स्ट्रेस लेवल को बढ़ा लेती हैं।
तनाव में लाभ नहीं मिलता है और यह बढ़ता तो बिना देर किए मनोचिकित्सक से जरूर सलाह लेना चाहिए। समय पर इलाज और थेरेपी मिलने से न सिर्फ लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद मिलती है साथ ही इससे डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे को कम किया जा सकता है। डॉक्टरी सहायता लेने में बिल्कुल न हिचकें। - डॉ. प्रियंका शर्मा, मनोरोग विशेषज्ञ, जेएएच