International Mountain Day 2022: 'ये मत कहो कि मेरी मंजिलें कठिन हैं, मंजिलों से कह दो मेरा हौसला बड़ा है।' यही अंदाज है इन युवा महिला पर्वतारोहियों का। माउंट एवरेस्ट सहित दुनिया के सर्वोच्च शिखरों पर फतह पाने वाली इन युवतियों ने बता दिया पंखों से नहीं, उड़ान भरने के लिए चाहिए उन ऊंचे पर्वतों जैसा हौसला भी। अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर मिलते हैं ऐसी ही कुछ महिला पर्वतारोहियों से। रामकृष्ण डोंगरे की रिपोर्ट...।
मेघा परमार बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। अपने राज्य मध्य प्रदेश की 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' की ब्रांड अंबेसडर हैं। उन्हें स्कूबा डाइविंग का भी शौक है। वे मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही हैं, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया है। उनके नाम दुनिया के चार महाद्वीपों में स्थित सबसे ऊंची चोटियों पर जीत हासिल करने का रिकार्ड भी दर्ज है। मेघा अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताती हैं, 'कालेज की पढ़ाई के दौरान ही मेरी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट शुरू होता है। मैं अपने भाइयों के साथ दूसरी मंजिल पर रहती। रोज हैंडपंप से 10-12 बाल्टी पानी लेकर चढऩा पड़ता था, यही मेरी मजबूती बन गयी। वह आगे बताती हैं कि इस दिनचर्या ने मेरे पैर मजबूत कर दिए और मैं ऊंचे शिखरों को छूने में समर्थ हो पाई।
मेघा ने आठ अगस्त, 2019 को यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराया था। वह मप्र के सीहोर जिले के छोटे से गांव भोज नगर से आती हैं। गांव छोटा हो लेकिन मेघा ने कभी खुद को किसी भी चीज से छोटा महसूस नहीं होने दिया। वह बताती हैं, 'मुझे एक सुविचार ने सबसे ज्यादा प्रेरित किया। काम करो ऐसा कि पहचान बन जाए, हर कदम ऐसा चलो कि निशान बन जाए, यहां जिंदगी तो सभी काट लेते हैं, जिंदगी जियो ऐसी कि मिसाल बन जाए। जब छोटी थी तभी से अपनी पहचान को लेकर सजग थी। मन में यह बात दबी रहती थी कि कहीं बस शादी तक ही मेरी पहचान न सीमित हो जाए। बचपन से ही अपनी पहचान को लेकर सजग थी। लोग मुझे मेरे नाम मेघा परमार से जानें।'
अपने दम पर हो जीत
‘मुश्किलें चाहे जिस रूप में आएं, आप तब तक उस पर प्रहार नहीं कर सकतीं, जब तक खुद पर यकीन न हो। प्रयास तो सभी करते हैं, लेकिन आत्मविश्वास से भरा प्रयास ही आपको मुकाम दिलाता है।’ कहती हैं छत्तीसगढ़ की पर्वतारोही अंकिता गुप्ता। वह कबीरधाम जिले से हैं। उन्होंने इसी साल 15 अगस्त को यूरोप महाद्वीप की 5642 मीटर ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराया था। वहां का तापमान -25 से -30 डिग्री सेल्सियस और हवा की गति 50-60 किलोमीटर प्रति घंटे तक रहती है। एक बार तो उनकी नाक और मुंह से खून तक निकलने लगा। इससे वह जरा विचलित तो हुईं पर खुद जल्द ही याद दिलाया कि ऐसी परेशानियां उनके सफर का हिस्सा हैं। पर्वतारोहण के सफर के बारे में बताते हुए अंकिता कहती हैं, 'मैंने कभी सोचा नहीं था कि पर्वतारोही बनना है। मैं एथलेक्टिस की खिलाड़ी थी। पर मेरे जुनून ने मेरी राह बदल दी।’ वह एथलेटिक्स में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी थीं। पर जब राह बदली तो गत वर्ष जनवरी माह में -39 डिग्री सेल्सियस पर लेह लद्दाख की यूटी कांगड़ी
की 6080 मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ाई की। अब लक्ष्य सातों महाद्वीपों की चोटी पर तिरंगा फहराकर देश का मान बढ़ाना है। अंकिता के मुताबिक, ‘इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा धन की कमी महसूस होती है। जैसे, माउंट एल्ब्रुस के अभियान में कुल पांच लाख रुपये खर्च हुए। मुझे आठ अगस्त को फ्लाइट से निकलता था, लेकिन चार अगस्त तक पैसों का इंतजाम नहीं हुआ था। फिर अचानक राज्य सरकार की तरफ से मुझे फोन आया और फंड की व्यवस्था हो गई, वरना मेरा यह सपना अधूरा रह जाता।'
मेरा सपना मेरी जिद
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से आने वाली भावना डेहरिया बेटी के जन्म के बाद पर्वतारोहण क्षेत्र में आई हैं। वह एक साधारण परिवार की हैं पर उनकी उपलब्धि बेहद असाधारण है। भावना ने 22 मई, 2019 को एवरेस्ट पर फतह किया था। उनके साथ उसी दिन मेघा परमार ने भी एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया था। भावना बताती हैं, 'मैं सातवीं कक्षा में थी, तभी बछेंद्री पाल की किताब 'एवरेस्ट- माई जर्नी टू द टाप' पढ़ी। इस किताब ने इतना प्रभावित किया भीतर ही भीतर यह सपना जी रही थी। मैंने ठान लिया था कि मुझे पर्वतारोही ही बनना है।' वह आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन उनकी राह में ऐसी कोई बाहरी चीज बाधक नहीं है। बस हौसला है जिसकी बदौलत वह दुनिया के पांच महाद्वीपों के सबसे ऊंचे शिखर पर तिरंगा फहराकर भारत का नाम रौशन कर चुकी हैं। इसी साल 15 अगस्त को उन्होंने माउंट एल्ब्रुस वेस्ट और माउंट एल्ब्रुस ईस्ट पर चढ़ाई की थी। वह कहती हैं, 'मैंने बेटी के जन्म के बाद ही खुद को पर्वतारोहण के लिए तैयार किया और तामिया के पहाड़ों पर अभ्यास किया। पर्वतारोहण का सपना पूरा करने का सफर आसान नहीं था, क्योंकि मैं अपनी 15 महीने की बेटी को छोड़कर इसे पूरा करने निकली थी।' पर्वतारोहण की कठिनाइयों के बारे में बताते हुए भावना कहती हैं, 'चोटी पर चढ़ाई के दौरान कदमों का तालमेल सही रखना होता है और सबसे बड़ी चुनौती आक्सीजन को बनाए रखने की होती है। कई लोग केवल इसलिए मर जाते हैं, क्योंकि उनकी आक्सीजन की सप्लाई रुक जाती है।'
अभिभावक को बना लिया दोस्त
शिवांगी पाठक हरियाणा के हिसार से आती हैं। किशोर उम्र में ही माउंट एवरेस्ट को छूने का सपना देखा करतीं। सबसे अच्छी बात यह रही कि उनकी मां ने उन पर विश्वास जताया और उनका साथ दिया। इसका असाधारण फल यह हुआ कि 16 साल की सबसे कम उम्र में नेपाल की ओर से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह करने का विश्व रिकार्ड शिवांगी के नाम दर्ज है। उन्होंने 16 मई, 2018 को एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था। 21 वर्षीय शिवांगी कहती हैं, 'मैंने अगर अपना सपना पहले ही दोस्तों को बताया होता तो वे मजाक उड़ाते और मेरा सपना टूट जाता। अभिभावकों को बताया, तो उन्होंने साथ दिया और यह संभव हो सका।'
शिवांगी मानती हैं कि अभिभावकों को दोस्त बना लें तो चीजें आसान हो जाती हैं। पर इसके लिए अभिभावकों का भरोसा जीतना जरूरी है। उन्होंने 111 दिन में दक्षिण अफ्रीका और एशिया की तीन चोटियों फतह करने का विश्व रिकार्ड भी बनाया है। पर्वतारोहण की मुश्किलों के बारे में वह बताती हैं, 'किसी भी काम में बाधाएं तो आती ही हैं लेकिन आपको निराश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। हर परिस्थिति से आपको कैसे निपटना है, यह आपको आना ही चाहिए।' उन्होंने बताया कि कैसे कोरोना की बीमारी और ताउते तूफान ने उनकी राहें रोक दी थीं और उन्हें माउंट ल्होत्से की चढ़ाई को बीच में छोडऩा पड़ा था, पर हारना कभी सीखा ही नहीं उन्होंने। इस युवा पर्वतारोही का कहना है, 'जरूरी नहीं है कि हर बच्चा किसी से प्रेरित होकर उनके जैसा बनने का सपना देखने लगे। बच्चों को जिस भी क्षेत्र में रुचि है, उसमें माउंट एवरेस्ट जैसी ऊंचाई छूने का प्रयास करना चाहिए।'
समझें पहाड़ की संस्कृति को
हिमालय देखने की जिज्ञासा में ही मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा था। मैं सोचती थी कि हिमालय कैसा दिखता होगा? फोटो में भगवान शिव और माता पार्वती के पीछे बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां नजर आती हैं। बचपन में मुझे लगता था कि यह कोई दूसरी दुनिया होगी, लेकिन फिर पता चला कि यह तो हमारी ही दुनिया का हिस्सा है। लोगों ने कहा कि यह दुबली-पतली नाजुक-सी लड़की कैसे पर्वतारोही बन सकती है पर मैंने खुद पर भरोसा किया और आगे बढ़ती गयी। हमें पहाड़ की संस्कृति को समझकर ही इस दिशा में आगे बढऩा चाहिए। पर्वतारोहण के दौरान समर्पित भाव से पहाड़ का स्पर्श करें। - पद्मश्री संतोष यादव, पर्वतारोही
चुनौतियों से आंख मिलाएं
यदि आपकी इच्छाशक्ति फौलादी है तो कोई भी चुनौती आपको डिगा नहीं सकती। यदि आपकी जिंदगी में कुछ नकारात्मक है तो उसे चुनौती के रूप में लें और उसे अवसर में बदल डालें। प्रशिक्षण के बाद हम छह लोग माउंट एवरेस्ट के लिए रवाना हुए थे। 21 मई, 2013 को मैं सबसे अंत में माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची थीं। आप सोच सकते हैं कि एक सामान्य आदमी पांच मंजिल की बिल्डिंग में सीढिय़ां चढऩे में हांफ जाता है तो मेरी क्या स्थिति रही होगी। मुझे डाक्टरों ने कृत्रिम पैर लगाया था, जिससे मैं चल-फिर सकती थीं। जब मैंने डाक्टरों को बताया कि मुझे माउंट एवरेस्ट पर चढऩा है तो उन्होंने कहा था कि तुम्हारे दूसरे पैर में भी राड लगी है, अगर कुछ हुआ तो राड टूटकर बाहर आ जाएगी लेकिन मैंने तो ठान लिया था कि मुझे माउंट एवरेस्ट चढऩा ही है।- अरुणिमा सिन्हा, पर्वतारोही
प्रकृति से प्रेम करें हम
मैंने 48 साल की उम्र में 2011 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी। मुझे बछेंद्री पाल से एवरेस्ट पर जाने की प्रेरणा मिली। वही मेरी गुरु हैं। नई पीढ़ी से कहना चाहती हूं कि आप एवरेस्ट पर जाना चाहते हैं तो जरूर जाइए, लेकिन देखा-देखी में नहीं, बल्कि पूरी तैयारी के साथ। अभी इक्विपमेंट जरूर बहुत अच्छे हो गए हैं, लेकिन पर्वत-पहाड़ वही हैं। यह कहना चाहती हूं कि हर कोई माउंट एवरेस्ट पर नहीं जा सकता, लेकिन आपको प्रकृति से प्रेम है तो पहाड़ों के नजदीक जरूर जाइए, तभी हम प्रकृति को समझ पाएंगे। मैंने 50 वर्ष की उम्र में 23 मई, 2013 को उत्तरी अमेरिका के अलास्का के माउंट मैकेनले का आरोहण किया था। - प्रेमलता अग्रवाल, पर्वतारोही
वे हिला रही हैं पर्वत
हर साल 11 दिसंबर को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस। इसका उद्देश्य पहाड़ों के संरक्षण और सतत विकास को प्रोत्साहित करना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार 11 दिसंबर, 2003 को यह दिवस मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने पहाड़ों के महत्व के बारे में बढ़ती जागरूकता के बाद वर्ष 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था। इस बर्ष अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस की थीम ही है 'महिलाएं पर्वतों को हिला रही हैं' । महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिहाज से यह थीम काफी प्रासंगिक है।