Ujjain News: उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। उज्जैन के जिस महान सम्राट (विक्रमादित्य) के नाम पर मध्य प्रदेश की सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर 33 दिवसीय उत्सव मना रहीं, उसी सम्राट का 'दरबार' मरम्मत की बाट जोह रहा है। स्थिति यह है की सम्राट के सिंहासन का छत्र गायब है और उनके नवरत्न दरबारियों का रंग उड़ा हुआ है। सिंहासन टूटा पड़ा है। प्रतीक चिह्नों की प्रतिकृति पर मकड़ी के जाले जमे हुए हैं। इस स्थिति को देख उज्जैनवासी और पर्यटक दोनों ही नाराज हैं। उनका कहना है कि जिस सम्राट के नाम से हिंदू पंचांग चलता, जिनके न्याय, धर्म, पराक्रम और ज्ञान का पूरा देश लोहा मानता उन्हीं के 'दरबार' की मरम्मत और साफ - सफाई पर ध्यान न दिया जाना ठीक नहीं।
मालूम हो की ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के पीछे रुद्रसागर के बीच टीले पर सम्राट विक्रमादित्य और उनके नौ दरबारियों का दरबार उज्जैन नगर निगम ने बना रखा है। यह स्थान पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है। इतिहासकारों का कहना है कि यहीं सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन का दरबार लगा करता था। कालांतर में यह स्थान उपेक्षित रहा और अतिक्रमण का शिकार भी हुआ। महाकुंभ सिंहस्थ-2016 शुरू होने से पहले इस टीले से अतिक्रमण हटाकर वहां 5 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर कार्य किए गए थे। सम्राट विक्रमादित्य फिर सिंहासन बत्तीसी पर 35 फीट ऊंची प्रतिमा के रूप में विराजे गए थे।
सम्राट के साथ उनकी राजसभा के नौरत्न और 32 पुतलियों की प्रतिमा भी स्थापित की गई थीं। सभी की जानकारी के लिए शिलालेख लगा गए, जिन पर पुतलियों की कहानी भी उकेरी गई। वक्त के साथ यह स्थान उपेक्षा का शिकार हुआ तो सम्राट के गढ़ को चूहे तक कुरेदने लगे। प्रतिमाएं जिन पेड स्टैंड पर रखी गईं, उनके पत्थर उखड़ने लगे और अब मूर्तियों का रंग भी उतरने लगा।
मूर्तियों की दुर्दशा देख पर्यटकों ने कहा है कि भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने वाली इस धरोहर और सौगात का ध्यान रखना चाहिए। इतनी अच्छी मूर्तियों से रंग उतरना, पत्थरों का उखड़ना अच्छी बात नहीं। इधर जानकारों का कहना है कि मूर्ति शिल्प स्थापना करते वक्त कहा गया था कि इनका न रंग उड़ेगा और न ये किसी प्रकार से क्षतिग्रस्त होंगी। ये प्रतिमा सालो-साल यूं ही चमकती रहेंगी।