Ujjain Master Plan 2035: उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। उज्जैन विकास के लिए प्रस्तावित मास्टर प्लान-2035 में संशोधन के लिए प्रस्तुत 1500 आपत्तियों में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी का संरक्षण और उसकी स्वच्छता सबसे अहम मुद्दा है। सर्वाधिक लोगों ने शिप्रा का ग्रीन बेल्ट एरिया 300-300 मीटर करने, नदी किनारे वृहद पैमाने पर छायादार पेड़ों का रोपण करने का प्रस्ताव दिया है। एक प्रस्ताव सोशल एक्टिविस्ट रामप्रसाद मालाकार का भी है, जिन्होंने कहा है कि कम खर्च में खुली नहर (ओपन कैनाल) बनाने को छह साल पहले 95 करोड़ रुपये खर्च कर बिछाई कान्ह डायवर्शन पाइपलाइन जमीन से बाहर निकाल लो और उज्जैन शहर का सारा गंदा पानी भी इसी खुली नहर में छोड़ दो। इस पानी से किसान अपने खेतों की आसानी से सिंचाई कर पाएंगे। उन्होंने सिंहस्थ क्षेत्र का फैलाव शिप्रा नदी किनारे लंबाई में करने को कहा है। कहा है कि ऐसा करना उचित होगा, अन्यत्र क्षेत्र में फैलाव करना गलत होगा।
प्रस्तावित मास्टर प्लान-2035 लागू करने से पहले नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग ने नागरिकों से 8 मई तक दावे-आपत्तियां मंगाई थीं। ये आपत्तियां कुछ ने सीधे विभाग को और कुछ ने कलेक्टर कार्यालय के माध्यम से भोपाल भेजने को जमा कराई है। दो दिन पहले पिपलीनाका और इंदिरानगर स्थित दाल मिल चौराहे पर सैकड़ों लोग एकत्र होकर प्रस्तावित मास्टर प्लान का विरोध भी कर चुके हैं। जिस जमीन पर 42 वर्षों से सिंहस्थ नहीं लगा, उस जमीन पर अपना आवास बनाए लोग अपनी जमीन सिंहस्थ अधिसूचित क्षेत्र से मुक्त रखने और शिप्रा का ग्रीन बेल्ट एरिया 300-300 मीटर करने का प्रस्ताव आपत्ति के रूप में शासन-प्रशासन को दे भी चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता, विधायक और 25 पूर्व पार्षद भी नागरिकों के समर्थन में सड़क पर उतर चुके हैं। अपनी भावना सरकार तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री को लिखित में ज्ञापन भी दे चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार उज्जैन विकास के लिए प्रस्तावित मास्टर प्लान-2035 के विरोध में अब तक दो हजार के आसपास दावे-आपत्तियां जमा हो चुकी हैं। पिछले साल 400 से अधिक आपत्तियो का स्थानीय स्तर पर शहर एवं ग्राम निवेश विभाग निदान भी चुका है।
सिर्फ पाइपलाइन बाहर निकालने से नहर नहीं बनती
जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री कमल कुवाल ने कहा है कि सुझाव सुनने में अच्छा लगता है पर हकीकत जुदा है। सिर्फ पाइपलाइन जमीन से बाहर निकाल देने से नहर नहीं बनती। ऐसा करना बहुत महंगा पड़ेगा। 2.6 मीटर व्यास की पाइपलाइन जमीनी सतह से 17 से 18 मीटर नीचे गहराई में बिछी है। नहर बनाने के लिए चौड़ाई में 800 से 100 मीटर तक 190.50 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा। काफी मिट्टी खोदाई करना पड़ेगी। योजना का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसके धरातल पर आकार लेने से किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा। योजना का नकारात्मक पक्ष यह है कि ओपन चैनल होने से जानमाल और मवेशियों के गिरने का खतरा रहेगा। इससे वातावरण में बदबू फैलेगी, जो पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। मिट्टी खोदाई और भूमि अधिग्रहण में काफी वक्त लगेगा।
बन रही शिप्रा के समानांतर भूमिगत आरसीसी बाक्स बनाने को डीपीआर
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से निकले नालों का पानी उज्जैन में प्रवाहित मोक्षदायिनी शिप्रा (नहान क्षेत्र) नदी में मिलने से रोकने को शिप्रा के समानांतर भूमिगत आरसीसी बाक्स बनाकर बिछाने को डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानी डीपीआर बना रहा है। ये डीपीआर इस माह बनकर शासन को भेजे जाने का दावा अफसर ने किया है। डीपीआर में उल्लेख किया जा रहा है कि गोठड़ा गांव में स्टाप डैम निर्माण कर शिप्रा नदी के समानांतर भूमिगत आरसीसी बाक्स का निर्माण किया जाएगा। योजना सिंहस्थ 2052 के वक्त इंदौर एवं सांवेर शहर की आबादी और सीवेज उद्वहन को ध्यान में रख तैयार की है।