Mahakal Sawari Special: उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शिव समस्त चराचर जगत के मूल माने गए हैं। इसलिए वे मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है वे शिव ही हैं। शिव देवता और दानव दोनों के द्वारा समान रूप से पूजित हैं, वे किसी में भी भेद नहीं करते हैं। शिव तत्व के इन्हीं रहस्यों को समझना है, तो श्रावण मास में ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर से निकलने वाली भगवान महाकाल की सवारी के दर्शन करने उज्जैन आइए, जहांं शिव का हर रूप एक रहस्य को उद्घाटित करता है। महाकाल की सवारी शिव,श्रावण व सोमवार के महत्व को भी प्रतिपदित करती है। शैव दर्शन की इस अद्भुत श्रृंखला में भगवान के मुखारविंदों का महत्व बताती नईदुनिया की खास रिपोर्ट..
शिव सहस्त्रनामावली पर आधारित है राजा का हर रूप
महाकाल मंदिर के पं.महेश पुजारी बताते हैं श्रावण-भादौ मास में निकलने वाली भगवान महाकाल की प्रत्येक सवारी में एक नए मुखारविंद को शामिल किया जाता है। भगवान महाकाल के इन रूपों को शिव सहस्त्रनामावली में उल्लेखित शिव के विभिन्ना् नामों के आधार पर बनाया गया है। शिव सृजन,संवहार,कला,संस्कृति के देवता है। शिव भक्तों में गुणों के आधार पर भी भेद नहीं करते हैं, ना ही वें किसी मत,मतांतर में बंधने वाले देव है।भगवान महाकाल की सवारी में निकले जाने वाले मुखारविंद भी यही कहानी कहते हैं।
शैव दर्शन के प्रतिरूप यह मुखारविंद...
मन महेश : सर्वोच्च प्रभु, भगवान शिव के अनेक नामों में एक महेश है, जो उन्हें सबसे श्रेष्ठ व अनादि देव के रूप में प्रतिष्ठित करता है। मन को मोह लने वाले महेश का एसा दिव्य मुखारविंद भगवान महाकाल की पहली सवारी में पालकी में विराजित कर भक्तों के दर्शनार्थ निकाला जाता है।
चंद्र मौलेश्वर : सोम का अर्थ चंद्रमा है। भगवान शिव ने कामी,कुटिल व वक्री चंद्रमा को अपने शीश पर स्थान दिया है, वैसे ही भगवान शिव हमें शीश नहीं तो चरणों में स्थाना देंगे यह स्मरण कराने के लिए सोमवार के दिन शिव आराधाना को चुना गया है। दूसरी सवारी में भगवान का यह मुखारविंद शामिल होता है।
शिव तांडव : भगवान महाकाल की सवारी में शिव का तांडव करते हुए श्रीविग्रह गुरुढ़ रथ पर विराजित कर निकाला जाता है। यह शैव व वैष्णव संप्रदाय में समरसता का प्रतीक है। भगवान विष्णु भी सदैव शिव की आराधना करते हैं। इसलिए शिव के वाहन पर गुरुढ़ पर आरूण होकर शिव भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।
उमा महेश : सोम का एक अर्थ उमा सहित शिव है। साधक केवल कल्याणकारी शिव की उपासना करके साथ में शक्ति की भी साधना करते हैं। क्योंकि शक्ति के बिना शिव का रहस्य समझना असंभव है। महाकाल की सवारी में नंदी पर सवार उमा महेश का मुखारविंद भक्तों को यही रहस्य समझाने के लिए निकाला जाता है।
सप्त धान : भगवान महाकाल की सवारी में सात धातुओं से निर्मित सप्तधान मुखारविंद भी शामिल रहता है। इसका आशय जीव की उत्पत्ति के रहस्य को समझाना है। शास्त्रों में मनुष्य का शरीर सप्त धातुओं से मिलकर बने होने का प्रमाण मिलता है। यह मुखारविंद सुष्टि के सृजन का प्रतिक बताया जाता है।
घटाटोप : सवारी में शामिल होने वाले भगवान महाकाल के एक मुखारविंद का नाम घटाटोप है, इसका अर्थ है बादलों में छाई काली घटाएं। पं.महेश पुजारी बताते हैं भगवान का यह रूप कला से जुड़ा है, तांडव नृत्य करते हुए भगवान की जटा जब खुलती है, तो वें आसमान में काली घाट छाने का आभास देती हैं।
होलकर: भगवान महाकाल का होलकर रूप जगत को दान धर्म की शिक्षा देने वाला है। होलकर राजवंश की ओर से यह मुखारविंद महाकाल मंदिर को भेंट किया गया था। इसलिए इसका नाम होलकर मुखारविंद रखा गया। यह मुखारविंद लोकाचार में भक्तों को दान करने के लिए प्रेरित करने वाला माना जाता है।