ईश्वर शर्मा, उज्जैन। मध्य प्रदेश बहुत शांत, संस्कृतिप्रिय और धर्मप्राण राज्य है। नगर की अलौकिकता का तो कहना ही क्या। हम तो अपने पूरे प्रदेश की ओर से मध्य प्रदेश का आभार जताते हैं कि यहां भारत की महान संस्कृति को संरक्षित करने व नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम बहुत अच्छी तरह से हो रहा है।
यह कहना है कि ओडिशा, बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों से अखिल भारतीय कालिदास समारोह में शामिल होने आए संस्कृति के सितारों का।
लखनऊ से पधारीं ख्यात लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी, भुवनेश्वर (ओडिशा) से आए ख्यात शास्त्रीय ओडिशी साधक गजेंद्र पंडा व कोलकाता (बंगाल) से सितार वादन करने आए पद्मभूषण बुधादित्य मुखर्जी ने नईदुनिया से चर्चा में मध्य प्रदेश, उज्जैन व कालिदास समारोह को लेकर अपने मन की बात कही। इन सभी ने मप्र में होने वाले सारस्वत आयोजनों की श्रृंखला के लिए नईदुनिया के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्य सरकार के संस्कृति मंत्रालय तथा कालिदास संस्कृत अकादमी का आभार जताया।
मप्र में संस्कृति का सूर्य उदित हो रहा : मालिनी अवस्थी
वर्तमान कालखंड में लोक गायन में देश का सबसे चर्चित नाम मालिनी अवस्थी मध्य प्रदेश का आभार प्रकट करते हुए कहती हैं - 'इस शांत और सुरभित राज्य ने भारत की संस्कृति, कला व साहित्य को संजोकर रखा है। यह देखना आनंद का अनुभव देता है कि सदियों तक अंधकार का दौर देखने के बाद अब भारत की संस्कृति का सूर्य पुन: प्रचंड होकर उदित हो रहा है। मध्य प्रदेश का योगदान इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाकवि कालिदास की याद में आयोजित ऐसे समारोह हमारी कला, साहित्य व संस्कृति में नव-प्राण फूंक देते हैं।'
यह संस्कृति के पुनर्जागरण का काल : बुधादित्य मुखर्जी
कोलकाता से सितार वादन की प्रस्तुति देने उज्जैन आए पद्मविभूषण बुधादित्य मुखर्जी कहते हैं- 'हम इस दौर में हैं और अत्यंत प्रसन्न् हैं कि अपनी आंखों से वह सब देख पा रहे हैं, जिसे भारत का उत्थान कहा जा सकता है। वर्तमान समय भारत की संस्कृति के पुनर्जागरण का कालखंड है। यह स्पष्ट तौर पर महसूस भी हो रहा है। एक राष्ट्र को अपना गौरव सदियों तक अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए यही तो करना होता है, जो कालिदास समारोह में किया जा रहा है। नई पीढ़ी तक हमारी हजारों वर्ष पुरानी विरासत पहुंच रही है, यह देखना सुखद है।
भारत मां की आत्मा प्रसन्न हो रही : गजेंद्र पंडा
ओडिशा राज्य के भुवनेश्वर नगर से उज्जैन आए ख्यात ओडिशी साधक गजेंद्र पंडा इस बात से प्रसन्न् हैं कि अब एक बार फिर शास्त्रीय कलाओं को मान मिल रहा है। महाकाल की नगरी में आने और कालिदास समारोह में संस्कृति की आराधना करने को अपने जीवन का मंगल क्षण बताते हुए पंडा कहते हैं - 'भारत माता यह देखकर प्रसन्न् हो रही होगी कि देश अब फिर से अपनी मूल संस्कृति की ओर लौटता दिख रहा है। कार्यक्रम पहले भी होते थे, लेकिन वे केवल प्रस्तुतियां बनकर रह जाते थे। किंतु अब देश का आत्मबल हमारी प्रस्तुतियों के साथ जुड़ जाता है, तो हमारे अंदर मानो नए प्राण आ जाते हैं। सौभाग्यशाली हैं कि हम इस दौर में हैं।'
विक्रम जीवंत हुए, कालिदास प्रसन्न् भए
कोलकाता के दिग्गज निर्देशक पियाल भट्टाचार्य के शिष्यों ने समारोह में हिंदी नाटक 'विक्रमसंवत्सर' की प्रस्तुति दी। भट्टाचार्य कहते हैं - 'कालिदास समारोह से ऐसा लगा मानो हजारों वर्ष पूर्व हुए महाराजा विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास यहां जीवंत हो उठे हों। हमें अपनी कला, साहित्य, संस्कृति को बचाने के लिए बस यही सब करते रहना होगा। हमारी संस्कृति आक्रांताओं की क्रूरता के बावजूद इसीलिए जीवित रह सकी क्योंकि भारत का विचार उदात्त है, संकुचित नहीं।'
इनका कहना है
यह मध्य प्रदेश और उज्जैन का सौभाग्य है कि हम अखिल भारतीय कालिदास समारोह जैसे आयोजन करके अपनी संस्कृति के सितारों को सम्मान दे पा रहे हैं। श्री महाकाल महालोक के लोकार्पण के बाद उज्जयिनी की धरती पर यह समारोह एक और अत्यंत महत्वपूर्ण आयोजन है।
- अदिति कुमार त्रिपाठी, निदेशक, कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन