नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन : मोक्षदायिनी शिप्रा नदी को निर्मल एवं अविरल बनाने को बनी जल संसाधन विभाग की इकाई का दावा है कि उज्जैन में साल 2028 में लगने वाले महाकुंभ ‘सिंहस्थ’ से पहले शिप्रा का पानी शुद्ध हो जाएगा। नदी में नालों का दूषित पानी मिलना पूरी तरह बंद होगा।
इसकी शुरूआत 919 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना को धरातल पर उतारने के साथ कर दी गई है। अगले चरण में 614 करोड़ 53 लाख रुपये की सेवरखेड़ी- सिलारखेड़ी मध्यम सिंचाई परियोजना का टेंडर भी गुरुवार को स्वीकृत कर दिया गया है।
ग्वालियर की फर्म करण डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड अगले 30 महीनों में 468 करोड़ से परियोजना को आकार देगी। इसके पहले सरकार जल शुद्धि के लिए 438 करोड़ रुपये की भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन परियोजना 1.0 का काम भी शुरू करवा चुकी है और जल्द ही 474 करोड़ की दूसरी सीवरेज पाइपलाइन परियोजना का काम शुरू कराने वाली है।
इतना ही नहीं शहर के दो बड़े नालों (भैरवगढ़, पिलियाखाल) का पानी शिप्रा में सीधे मिलने से रोकने को पीलियाखाल में 78 करोड़ रुपये से भैरवगढ़ में 2.4 एमएलडी का ईटीपी (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) और पिलियाखाल में 22 एमएलडी का एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने को ठेकेदार चयन की कार्रवाई भी प्रचलन में है।
शिप्रा को निर्मल एवं अविरल बनाने पर बीते एक दशक में साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्चे जा चुके हैं। सबसे बड़ी शुरूआत 25 फरवरी 2014 को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नर्मदा को शिप्रा से जोड़ने के साथ की थी। तब दो नदियों का संगम कराने पर 432 करोड़ रुपए खर्चे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि नर्मदा-शिप्रा के संगम से पूरे मालवा की धरती समृद्ध होगी। नर्मदा का जल लोगों को पेयजल के साथ सिंचाई, औद्योगिक जरूरतों के लिए भी मिलेगा।
इसके बाद महाकुंभ सिंहस्थ और उसके बाद अब तक पेयजल और पर्व स्नान के लिए जरूरत पड़ने पर नर्मदा का जल शिप्रा में छोड़ा जाता रहा। वर्ष 2018 तक केवल प्राकृतिक प्रवाह से ही ये जल छोड़े जाने की सुविधा थी, मगर वर्ष 2019 में 139 करोड़ रुपये ओर खर्च कर पाइपलाइन के माध्यम से नर्मदा का पानी शिप्रा में छोड़ने की व्यवस्था बनाई। खास बात यह है कि सिंचाई और औद्योगिक जरूरत के लिए अभी भी उज्जैन के लोगों को नर्मदा का पानी उपलब्ध नहीं हो पाया है।
इसके बाद वर्ष 2016 में इंदौर का सीवेज युक्त नालों का पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए 95 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन परियोजना को धरातल पर उतारा। हालांकि ये योजना पूरी तरह सफल न हो सकी। डायवर्शन पाइपलाइन के बावजूद शिप्रा में बारह माह कान्ह का प्रदूषित पानी मिलता रहा। फिर 2018 में 1856 करोड़ रुपये की नर्मदा- शिप्रा बहुउद्देशीय योजना का शिलान्यास किया, जो अब तक पूरी नहीं हो सकी है। जबकि इसे जनवरी 2022 में पूरा हो जाना था।