मनीष असाटी, नईदुनिया टीकमगढ़(Deepawali 2024)। बुदेलखंड की धार्मिक नगरी ओरछा में दीपावली उत्सव आज से धूमधाम से मनाया जाएगा। ओरछा में अयोध्या की तरह श्री रामराजा सरकार के दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। दीपावली की रात बुंदेलखंड के करीब 150 गांवों से टोलियां दीपावली नृत्य करते हुए ओरछा पहुंचेंगी।
टोलियों ने अपने वस्त्र छोटे-छोटे कांच के शीशे लगे हुए रस्सी जैसे बांधकर मोटे ऊनी कपड़े से तैयार किए हैं। दीपावली से देवउठनी ग्यारस तक विशेष तौर पर टोलियां गांवों में घूमती हैं। जैसे मथुरा-बरसाने की होली, मैसूर का दशहरा, महाराष्ट्र का गणेशोत्सव भगवान से जुड़ाव को प्रकट करने की विशिष्ट शैली के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, वैसे ही बुंदेलखंड का दीपावली नृत्य अपनी अनूठी नृत्य, संगीत और वेशभूषा के कारण मशहूर है।
जो कोई भी दीपावली नृत्य देखता है, वह बरबस ही भगवान से जुड़ाव महसूस करने लगता है और अनूठे बुंदेली नृत्य संगीत की दीपावली शैली से सम्मोहित हो जाता है। दीपावली नृत्य की पुरानी परंपरा अभी भी कायम है, जिसमें वही साजबाज व गायन शामिल है।
हालांकि पहले लोग ओरछा पैदल जाते थे, अब ट्रैक्टरों के माध्यम से पहुंच जाते हैं। रामराजा सरकार के दरबार में आने वाले पर्यटक भी बुंदेली रंग में दीपावली नृत्य में रंगने को मजबूर हो जाते हैं।
हर गांव से रवाना होतीं हैं टोलियां
बुंदेलखंड में दीपावली से ही त्योहारों की एक शृंखला शुरू हो जाती है। दीपावली की नृत्य मंडलियां रंगीन वेशभूषा और भगवान के प्रति असीम आस्था को प्रकट करते लोकगीत, नृत्य का सृजनात्मक स्वरूप प्रस्तुत करती हैं। दीपावली नृत्य की टोलियों का लोग सालभर इंतजार करते हैं और गांव की गलियों से गुजरने पर अपने दरवाजे इन टोलियों का ठेठ बुंदेली अंदाज में स्वागत करते हैं।
मोहनगढ़ के शिवचरण यादव बताते हैं कि इस नृत्य में मुख्य आकर्षण बुंदेली साज नगड़िया और गायन शैली होती है। दीपावली पुराने अंदाज में गाने का कार्य वह करीब 40 वर्ष से कर रहे हैं। गांव में उनकी पांच टोलियां हैं।
रतिराम सिंह बताते हैं कि भगवान रामराजा सरकार के यहां दीपावली गायन शुरू करने के बाद हम लोग देवउठनी ग्यारस पर ही घर पहुंचते हैं। 11 दिनों तक गांवों में नृत्य करते हुए जाते हैं। परंपरा काफी पुरानी है। वह तीसरी पीढ़ी के रूप में दीपावली नृत्य कर रहे हैं।