शिवपुरी(नईदुनिया प्रतिनिधि)। शिवपुरी में टाइगर सफारी बनाने का मुद्दा लोकसभा से लेकर तक में गूंज चुका है। देश के दोनों सदनों में कागजों पर माधव नेशनल पार्क का टाइगर दहाड चुका है। इस वर्ष मार्च में ही सासंद केपी यादव ने संसद में प्रश्नकाल के दौरान माधव नेशनल पार्क में टाइगर सफारी बनाने पर सवाल पूछा था। इसके पहले विधानसभा में इस पर प्रश्न पूछा जा चुका है। वन विभाग भी सालों से कागजों पर टाइगर सफारी बना रहा है। फिलहाल माधव नेशनल पार्क में टाइगर सफारी बनने की योजना अब ठंडे बस्ते में जा चुकी है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि एक साल के अंदर माधव नेशनल पार्क में चीता या टाइगर आने की पूरी संभावनाएं हैं। गत दिवस वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के तीन वैज्ञानिकों की टीम ने माधव नेशनल पार्क में चीता या टाइगर लाने की संभावनाएं देखीं। इसमें चीता के आने की सबसे ज्यादा उम्मीद है। चूंकि भारत में चीता विलुप्त होने के कागार पर हैं इसलिए इन्हें जिंबॉम्बे या साउथ अफ्रीका से लाया जाएगा।
माधव नेशनल पार्क में चीता लाने में सबसे बडी चुनौती सुरक्षा को लेकर है। टीम का मानना है कि चीता के लिए पार्क के चारों तरफ कम से कम 12 फीट की फेंसिंग करनी होगी। जिससे कि चीता बाहर न जा सके। इसके अलावा उसके लिए वातावरण में और भी परिवर्तन करने होंगे जिससे वह चीता के अनुकूल हो। वन विभाग ने वैज्ञानिकों को तीन से चार जगह दिखाई हैं जहां पर चीता को बसाया जा सकता है।
खुले वातावरण में रहेगा चीता, शिकार भी कर सकेगा
नेशनल पार्क के अंदर सन् 1988 में टाइगर सफारी की शुरुआत तत्कालीन केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की पहल पर शुरू की गई थी। यहां पर पेटू और तारा नाम के टाइगर थे जिनकी संख्या एक समय 10 तक पहुंच गई थी। उस समय टाइगर बंद वातावरण यानी एक बडे पिजिंरे में रहते थे। इसस बार जो चीता आएगा वह खुले वातावरण में रहेगा। उसके क्षेत्र में चीतल आदि भी होंगे जिनका वह शिकार कर सकेगा।
सैलानियों को आकर्षित करने के साथ ईको सिस्टम के लिए जरूरी है चीता या टाइगर
जंगल का एक अपना ईको सिस्टम होता है। इसमें शिकारी जानवरों का होना भी जरूरी है जिससे संतुलन बना रहता है। पार्क में चीता या टाइगर के आने से यह ईको सिस्टम पूरा होगा। दूसरी ओर इससे पर्यटन बढेगा और यह सैलानियों के बीच आकर्षण का केंद्र बनेगा। इससे पार्क का तो विकास होगा ही, साथ ही प्रत्यक्ष रूप से और रोजगार भी बढेंगे।
यह चुनौतियां आ रही सामने
- पार्क में कई खेत भी लगे हुए हैं। चीता का स्वभाव शांत गति से भागने का होता है। खेत में उसे दौडने के लिए अच्छी जगह मिलती है इसलिए वह उस ओर भागता है।
- पार्क के बीच से झांसी हाइवे गुजरता है। साथ ही पार्क में गलत तरीके से लोग घुस आते हैं। इसके लिए पार्क कवर करना जरूरी है।
- पार्क के चारों ओर 12 फीट की फेंस बनाना सालों का काम है और इसमें खर्च बहुत अधिक है क्योंकि पार्क का क्षेत्रफल बहुत अधिक है। चीता लाने का प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद ही इसका काम युद्ध स्तर पर किया जा सकेगा।
वर्जन
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की टीम ने दो दिन पहले चीता या टाइगर लाने की संभावनाएं देखी हैं। हमने उन्हें कुछ जगह चिन्हित कर दिखाई हैं। ााअब आगे का निर्णय उनकी टीम लेगी। हमें सालभर के अंदर चीता आने की उम्मीद है जो जिंबॉम्बे या साउथ अफ्रीका से लाया जाएगा।
अनिल सोनी, सहायक संचालक, माधव नेशनल पार्क ।
फोटो- 04- माधव नेशनल पार्क का फाइल फोटो