नईदुनिया प्रतिनिधि, शिवपुरी। विधानसभा चुनाव में टिकट के लालच में जमकर दल-बदल की राजनीति हुई है। सबसे ज्यादा असर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की परंपरागत सीट शिवपुरी में हुआ, जहां एक के बाद एक कई पुराने भरोसेमंदों ने सिंधिया का साथ छोड़ा। जिन्होंने सिंधिया से राजनीति का ककहरा सीखा, वे भी उनके खिलाफ मुखर हुए, परंतु न तो चुनाव में टिकट मिला और अब चुनाव परिणामों में कांग्रेस के चित हो जाने से पद मिलने की आस भी समाप्त हो गई।
चुनाव के पहले कट्टर सिंधिया समर्थक रहे और उनके साथ भाजपा में आए बैजनाथ सिंह यादव, राकेश गुप्ता, रघुराज धाकड़ ने कांग्रेस में वापसी की। इसके बाद पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जितेंद्र जैन गोटू कांग्रेस में चले गए। यह क्रम यहीं नहीं रुका और आचार संहिता लागू होने कुछ दिन पहले ही कोलारस में विधायक रहते हुए वीरेंद्र रघुवंशी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वीरेंद्र रघुवंशी के राजनीतिक गुरु कभी सिंधिया ही रहे, लेकिन समय के साथ उनकी राजनीति सिंधिया विरोधी हो गई थी।
इस बार उन्होंने पार्टी सिंधिया समर्थकों से अनबन के चलते छोड़ी। इनमें से सिर्फ 72 वर्षीय बैजनाथ सिंह यादव को कोलारस से टिकट मिला, लेकिन उन्होंने 50 हजार वोटों से अंचल की सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। अब इन सभी का राजनीतिक भविष्य संकट में है, क्योंकि इनमें से अधिकांश उम्रदराज नेता हैं। कांग्रेस में पहले से ही इन्हें लेकर विरोध है और भाजपा में भी अब तवज्जो मिलने की कोई आस नहीं है।
वीरेंद्र रघुवंशी ने कोलारस में विधायक रहते हुए पार्टी छोड़ी और गंभीर आरोप भी लगाए। शिवपुरी से टिकट का वादा कांग्रेस ने किया था, लेकिन अंतिम समय में केपी सिंह टिकट ले आए। भोपाल से दिल्ली तक एड़ी चोटी का जोर लगाया, लेकिन टिकट नहीं मिला। इसके बाद कुछ समय राधौगढ़ और कोलारस में कांग्रेस का प्रचार किया और शिवपुरी से दूर रहे। अब उन्हें शिवपुरी-गुना लोकसभा सीट से कांग्रेस से आस है, यदि वहां भी चूके तो राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।