
सोईंकलां। कीटनाशक दवा एवं खाद फसलों से लेकर जमीन और इंसान के शरीर पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं। इसलिए श्योपुर के छोटे व मंझोले किसान ऐसे खाद व दवाओं से तौबा कर अपने घर पर ही जैविक खाद और खेती के लिए दवाएं बनाने में जुट गए हैं।
इस काम में किसानों की मदद एनआरएलएम संस्था के अलावा आंध्रप्रदेश के विशेषज्ञ कर रहे हैं। श्योपुर में 35 से ज्यादा गांवा में किसान जैविक खाद व दवाएं बनाना सीख चुके हैं और उनका उपयोग कर खेती भी कर रहे हैं। खास बात यह है कि जैविक खेती को अपनाने वालों में सबसे ज्यादा आदिवासी किसान हैं।
सरकारी एनजीओ एन आरएलएम ने किसानों को जैविक खेती की तरफ मोड़ने का बीड़ा उठाया है। एनआरएलएम के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार खतरनाक केमिकल से बनने वालीं कीटनाशक दवाएं व खाद के उपयोग से होने वाले अनाज से कई तरह की बीमारियां फैलती है।
इन बीमारियों को रोकने के लिए ही लोगों को जैविक खेती की ओर प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा गाय के गोबर, गौ मूत्र से लेकर नीम एवं गांवों में आसानी से मिलने वाली चीजों से जैविक खाद व दवाएं बनाई जा रही है। इन जैविक खाद व दवाओं के उपयोग से खेतों उपज को बढ़ती ही है साथ ही जैविक अनाज के भाव भी अच्छे मिलते हैं।
बाहर के सफल किसानों ने बताई विधि
एनआरएलएम और किसान भारती एग्रोपरपज को. सोसाएटी नाम की संस्था ने आंध्रप्रदेश के ऐसे किसानों को चिन्हित किया जो जैविक खाद व दवा बनाने में निपुण हैं। आंध्र के इन किसानों को श्योपुर लाया गया। पिछले तीन साल से आंध्र के किसान श्योपुर के किसानों को जैविक खेती करने के गुण सिखा रहे हैं। सोंई व कराहल क्षेत्र में कई किसानों ने जैविक खेती कर पैदावार को बढ़ाया है।
पैदावार से लेकर दाम तक में फायदा
केमिकल युक्त दवा व खाद के उपयोग से जिस एक बीघा में औसतन 9 क्विंटल गेहूं पैदा होता है। जैविक खाद से उसी एक बीघा में किसानों ने 11 से 12 क्विंटल तक की पैदावार ली है। जैविक खेती की फसल का महत्व भी अलग है। आम तकनीक से होने वाले गेहूं के भाव 1600 रुपए क्विंटल है तो जैविक खेती से पैदा हुआ गेहूं 2300 रुपए क्विंटल में बाजार में बिक रहा है।