बांदरी (दिवाकर वर्मा, सागर)। सावन का महीना और फिर भगवान शिव के पूजन की बात आए और बिल्व पत्र की चर्चा ना हो, यह नामुमकिन है। महीना सावन का ही है और जगह-जगह शिवजी के अभिषेक और वंदन की धूम है। पूजन में उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करके प्रसन्ना किया जा रहा है।
आम तौर पर बिल्व पत्र तीन पत्तों की होती है। तीन से अधिक पत्तों वाले बिल्व पत्र भी कुछ जतन करने पर मिल जाते हैं। बांदरी के पास स्थित बिदवासन गांव में एक परिवार ऐसा भी है, जिसके पास चार, पांच, छह, सात और नौ पत्र वाले बिल्व पत्रों का अनूठा संग्रह है।
विदवासन गांव के ज्योतिषाचार्य पं. राधिका प्रसाद खड्डर ने बताया कि कि कुछ समय पहले रास्ते में बिल्व पत्र के लिए रुके तो इस तरह के अनूठे बिल्व पत्र मिले, जिनको हमने संग्रह करके और लेमीनेशन कराके रख लिया, जो अब तक सुरक्षित है। जानकारी मिलने पर कई पुरोहित और जानकार भी बिल्व पत्रों के दर्शन के लिए पहुंच गए। पं.
श्री खड्डर का कहना है कि तीन से अधिक पत्तियों वाले बिल्व पत्र दुर्लभ होते हैं। ऐसा पुराणों में भी आया है। वे कहते हैं कि इस तरह के बिल्व पत्र में यदि राम का नाम लिखकर उसे शिवजी को अर्पित कर दिया जाए तो उसका अनंत फल प्राप्त होता है।
इक्कीस साल से घर-घर दे रहे बिल्व-पत्र
बांदरी के भगवान सिंह, टीकाराम बाबा व केरबना के लक्ष्मण पटेल की शिव भक्ति भी बेमिसाल है। सावन में हर दिन उनका यही काम रहता है कि लोगों के घर-घर जाकर बिल्व-पत्र देना, वह भी निशुल्क। न कोई मांग न कोई चाह। बस यही एक काम। केरबना के लक्ष्मण बताते हैं कि रोजाना सुबह 8 बजे से लोगों के घर भगवान शिव को
प्रिय सामग्री देने पहुंच जाता हूं। दोपहर तक बिल्व पत्र देने के बाद वापस अपने घर पहुंच जाता हूं। सिर्फ सावन माह ही नहीं, यदि किसी के यहां अलग से शिवलिंग निर्माण का कार्यक्रम चल रहा हो और लक्ष्मण को इसकी जानकारी हो तो हर हाल में वे बिल्व पत्र लेकर पहुंच ही जाते हैं।
इन तिथियों पर न तोड़ें बिल्व पत्र
पंडितों के अनुसार बिल्व पत्र को तोड़ते समय भगवान शिव का ध्यान करते हुए मन ही मन प्रणाम करना चाहिए। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि पर बिल्व पत्र न तोड़ें। साथ ही तिथियों के संक्रांति काल और सोमवार को भी बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। बिल्व पत्र को कभी भी टहनी समेत नहीं तोड़ना चाहिए। साथ ही इसे चढ़ाते समय तीन पत्तियों की डंठल को तोड़कर ही शिव को अर्पण करना चाहिए।
संपन्नता का प्रतीक
बिल्व का पेड़ संपन्नाता का प्रतीक। बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है। मान्यता है कि बिल्व वृक्ष में मां लक्ष्मी का भी वास है। घर में बिल्व पत्र लगाने से देवी महालक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं। सावन, प्रत्येक सोमवार व शिवरात्रि पर बिल्व पत्र से भगवान शिव का पूजन करने से समस्त सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है। धन-सम्पति की कभी भी कमी नहीं होती है - पं. रामस्वरूप तिवारी, शासकीय शिक्षक
मां गिरिजा का वास
स्कंदपुराण में बेल पत्र के वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में कहा गया है कि एक बार मां पार्वती ने अपनी उंगलियों से अपने ललाट पर आया पसीना पोंछकर उसे फेंक दिया। मां के पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं। कहते हैं उसी से बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष की जड़ों में मां गिरिजा, तने में मां महेश्वरी, इसकी शाखाओं में मां दक्षयायनी, बेल पत्र की पत्तियों में मां पार्वती, इसके फूलों में मां गौरी और बेल पत्र के फलों में मां कात्यायनी का वास हैं - टीकाराम बाबा, तपस्व
मिला और दर्शन शुभ
बिल्व पत्र पर तीन पत्तियां होती हैं लेकिन तीन से अधिक पत्ते का बिल्व पत्र का मिलना और दर्शन बेहद शुभ होता है। इसको शिवजी को अर्पित करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बिल्व पत्र एक ऐसा पत्ता है जो कभी भी बासी नहीं होता है। भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से प्रयोग में लाए जाने वाले इस पावन पत्र के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि यदि नया बिल्व पत्र न उपलब्ध हो तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बिल्व पत्र को भी धोकर कई बार पूजा में प्रयोग किया जा सकता है- पं. राधिकाप्रसाद खड्डर , ज्योतिषाचार्य
दर्शन कर लेने मात्र से पापों का शमन
माना जाता है कि बिल्व पत्र भगवान शिव को बेहद प्रिय है। शास्त्रों में आया है कि बिल्व पत्र का दर्शन कर लेने
मात्र से पापों का शमन हो जाता है। बिल्व पत्र अगर दुर्लभ या विशेष प्रकार का हो तो फिर इसके क्या कहने
- पं. लक्ष्मीनारायण शास्त्री, भागवतवक्ता