अम्बुज माहेश्वरी, रायसेन। देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व डॉ शंकरदयाल शर्मा की पत्नी विमला देवी शर्मा रायसेन जिले की पहली महिला विधायक रही हैं। सन 1985 में जिले की उदयपुरा सीट से विधायक रही विमला देवी शर्मा का शनिवार को दिल्ली में निधन हो गया। इस सीट के 1962 में अस्तित्व में आने पर पहले विधायक उनके पति स्व डॉ शंकर दयाल शर्मा चुने गए थे। डॉ शर्मा इसके पहले अविभाजित मप्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। सन 62 में उनके उदयपुरा से चुनाव जीतने के बाद अगले दो चुनाव तक यह सीट कांग्रेस के गढ़ के रूप में तब्दील हो गई थी।
सन 1977 में इसे अपने कब्जे में लाने के लिए जनता पार्टी ने ठाकुर गोवर्धन सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा और कांग्रेस से यह सीट छीन ली। डॉ शंकरदयाल शर्मा तब तक इंदिरा सरकार में कैबिनेट मंत्री बन चुके थे और यहाँ मप्र कांग्रेस इस सीट को फिर हथियाना चाहती थी तब डॉ शर्मा की पत्नी श्रीमती विमला देवी शर्मा को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया और वे चुनाव जीतकर जिले की पहली महिला विधायक बनी।
डॉ शर्मा के उपराष्ट्रपति बन जाने के कारण श्रीमती शर्मा आगे चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी यह बात स्पष्ट हो जाने पर बेहद हाइप्रोफाइल हो चुकी इस सीट पर 1990 के चुनाव में भाजपा युवा प्रत्याशी रामपाल सिंह राजपूत को उतारकर जीत हासिल करने की रणनीति में कामयाब हो गई। श्रीमती शर्मा के बाद दूसरी महिला विधायक श्रीमती शशिप्रभा सिंह राजपूत रहीं जो वर्ष 2007 में अपने पति रामपाल सिंह राजपूत के इस्तीफे के बाद उपचुनाव लड़ी थीं।
पूर्व राष्ट्रपति का जैथारी में हुआ था जन्म
डॉ शंकरदयाल शर्मा के देश के उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति बन जाने के बाद भी क्षेत्र के जैथारी से नाता बना रहा बहुत कम लोग यह बात जानते कि उनका जन्म रायसेन जिले के जैथारी ग्राम में ही हुआ था। उनका व शादी हो जाने के बाद पत्नी का यहाँ लोगों से सीधा जुड़ाव था और इसी के चलते उन्होंने 1962 में उदयपुरा सीट का पहला चुनाव खुद लड़ा और सन 77 में यहाँ से जनता पार्टी का विधायक बन जाने पर 1985 में पत्नी को इसी सीट से चुनाव लड़वाया।
1977 तक डॉ शर्मा इंदिरा सरकार में कैबिनेट मंत्री बन चुके थे और उदयपुरा सीट पर जनसंघ के गोवर्धन सिंह कुशवाह काबिज हो गए थे। कांग्रेस ने इस सीट को फिर अपने कब्जे में करने 1985 में डॉ शर्मा की पत्नी श्रीमती विमला देवी शर्मा को चुनाव लड़ाया था और वे यहां से जीतकर जिले की पहली महिला विधायक बनी थी।
लखनऊ विवि के प्रोफेसर रहते बताई थी बौरास की शौर्य गाथा
डॉ शर्मा सन 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे तब उन्होंने लिखा था कि " मैं उस जन्मभूमि का पुत्र हूँ जहाँ की जनता इतनी जागृत और निर्भीक है कि जहाँ के वीर बौरास का अद्भुत दृश्य उपस्थित कर सकते हैं"। गौरतलब है कि देश की आजादी के बाद उदयपुरा भोपाल रियासत में आता था और विलीनीकरण आंदोलन में बौरास घाट पर तिरंगा फहराने पर कई युवा शहीद हुए थे। डॉ शर्मा 1962 से 71 तक उदयपुरा विधायक रहे।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री रहे लेकिन जैथारी से नाता नहीं टूटा
डॉ शंकरदयाल शर्मा के देश के उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति बन जाने के बाद भी क्षेत्र के जैथारी से नाता बना रहा। यहाँ पैतृक मकान के साथ कृषि भूमि थी। पिताजी वैद्यशाला चलाते थे। सन 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय में जब वह प्रोफेसर थे तब उन्होंने लिखा था कि " मैं उस जन्मभूमि का पुत्र हूँ जहाँ की जनता इतनी जागृत और निर्भीक है कि जहाँ के वीर बौरास का अद्भुत दृश्य उपस्थित कर सकते हैं"। गौरतलब है कि देश की आजादी के बाद उदयपुरा भोपाल रियासत में आता था और विलीनीकरण आंदोलन में बौरास घाट पर तिरंगा फहराने पर कई युवा शहीद हुए थे।