Morena News: हरिओम गौड़, मुरैना । चंबल के बीहड़ों से डकैतों का खात्मा सालों पहले हो गया, लेकिन यहां के बीहड़ों का बंजरपन कायम है। इसे खेती लायक बनाने के लिए राज्य सरकार ने पांच साल पहले बीहड़ भूमि उपचार योजना बनाई। बजट भी 1100 से बढ़ाकर 1600 करोड़ रुपये मांगा गया, लेकिन एक बीघा बीहड़ को भी खेत नहीं बना पाए। दूसरी तरफ पड़ोसी राज्य राजस्थान के किसानों ने बिना किसी सरकारी मदद के बीहड़ को खेत में बदलकर कम पानी में होने वाली सोवा (सुवा) फसल लहलहा दी।
साल 2016 में बनी बीहड़ भूमि उपचार योजना के तहत चंबल संभाग के मुरैना, भिंड व श्योपुर में नदी किनारे एक लाख 62 हेक्टेयर में फैले बीह़ड़ को खेती लायक बनाया जाना था। मुरैना के आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र ने इसका अनुमानित खर्च 1100 करोड़ रुपये का आंका।
फाइलों में ही संभावित खर्च बढ़ाकर 1600 करोड़ रुपये भी कर दिया गया पर योजना बीहड़ों में नहीं उतर सकी। जबकि राजस्थान में धाैलपुर से लेकर करौली जिले की सीमा में जहां-जहां चंबल नदी किनारे बीहड़ हैं वहां किसानों ने इन्हें समतल कर खेत बना लिए। मोरोली, डांगबसई, बसई नीब, कोटरा, सेवरपाल, महदपुरा, सीलपुरा, घुरैया बसई, तिगरा आदि दर्जनों गांव हैं, जहां 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा बीहड़ अब खेत बन गए और फसलें लहलहा रही हैं।
मध्य प्रदेश में कई विभागों का डर, पड़ोसी किसान निडर
राजस्थान में किसानों को बीहड़ों में खेती से नहीं रोका गया, यही बात वहां के किसानों के लिए वरदान साबित हुई। जबकि मध्य प्रदेश में चंबल घड़ियाल अभयारण्य, वन विभाग और राजस्व विभाग की सख्ती और कार्रवाई के डर से भी किसान डरते हैं। अगर कोई किसान खुद के खर्च से जेसीबी या ट्रैक्टर से बीहड़ समतल करता पकड़ा गया तो वह वाहन राजसात कर लिया जाता है। बिना सिंचाई की सोवा की फसल से बीहड़ में हरियाली राजस्थान में किसानों ने पानी की कमी को देखते हुए बीहड़ में सरसों की तरह दिखने वाली सोवा की फसल उगाई।
सोवा (यूरेका सराइवा) के बीज मसाला बनाने से लेकर कई प्रकार के तेल व आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में उपयोग होते हैं। सोवा 5500 से 5700 रुपये क्विंटल में बिकता है जबकि सरसों का भाव 5300 से 5400 रुपये क्विंटल है।
इनका कहना
बीहड़ों के लिए योजना 2016 में बनी और इसका दूसरा प्रस्ताव कुछ सप्ताह पहले ही फिर से भेजा है। इसके जरिए बीहड़ों को समतल कर खेती लायक बनाना है। प्रस्ताव भेजने के बाद क्या हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है। पूरी योजना सरकार के स्तर पर विचाराधीन है।
डॉ. वायपी सिंह, सह संचालक, कृषि अनुसंधान केंद्र, मुरैना
राजस्थान में बीहड़ों के समतलीकरण की कोई योजना अब तक नहीं बनी है। किसानों ने अपने स्तर पर ही यह बीहड़ खेती लायक किए हैं। इसका कारण यह है कि खेती योग्य जमीन कम है और उनके दाम भी बढ़ रहे हैं। सालों पहले कुछ किसानों को सरकार ने बीहड़ों में पट्टे भी दिए हैं। उन्होंने कुएं, बोर व बिजली की व्यवस्था खुद की है।
राकेश जायसवाल, कलेक्टर, धौलपुर राजस्थान