Pashupatinath Mandsaur: आलोक शर्मा, नईदुनिया, मंदसौर। भगवान शिव की विश्व की पशुपतिनाथ की एकमात्र अष्टमुखी मूर्ति मंदसौर में विराजित हैं। यह अनंत श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। सावन माह में हर सोमवार को हजारों कांवड़ यात्री आते हैं। सावन के अंतिम सोमवार को शाही सवारी निकलती है।
मालूम हो कि भगवान शिव की मूर्ति शिवना नदी से विक्रम संवत 1997 (सन 1940) में निकाली गई थी। ग्रीष्मकाल में नदी का जलस्तर कम होने पर सर्वप्रथम उदाजी को मूर्ति का कुछ अंश दिखा तो समाजसेवक बाबू शिवदर्शनलाल अग्रवाल को सूचना दी।
सभी के सहयोग से रेत में दबी मूर्ति बाहर निकाली गई। बाबू शिवदर्शनलाल अग्रवाल ने 14 जोड़ी बैल से जुती हुई गाड़ी से मूर्ति महादेव घाट के ऊपर लाकर एक पेड़ की छाया में रख दी थी। फिर इसका संरक्षण करते रहे।
1961 में चातुर्मास में विराजमान स्वामी श्री प्रत्यक्षानंद महाराज का ध्यान मूर्ति पर गया और मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी सोमवार 27 नवंबर 1961 को शुभ मुहूर्त में अष्टमुखी भगवान शिव की दिव्य मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई। उसी समय स्वामी श्री प्रत्यक्षानंदजी ने ‘श्री पशुपतिनाथ महादेव’ नाम उदघोषित किया गया।
भगवान श्री पशुपतिनाथ की दुर्लभ मूर्ति 7.25 फीट ऊंची है। गोलाई में 11.25 फीट, वजन में 125 मन यानी 46 क्विंटल है। शिल्प शास्त्र के अध्येताओं के अनुसार यह मूर्ति गुप्त औलिंकर युग में निर्मित जान पड़ती है।
अष्टमुखी मूर्ति में बाल्यकाल, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था का सजीव अंकन है। यह मूर्ति गुप्तकालीन मानी जाती है। महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ में मंगलाचरण में अष्टमूर्ति शिव की आराधना की है।
मंदसौर में रेलवे स्टेशन है, इसके साथ ही पास में शामगढ़, सुवासरा, नीमच और रतलाम स्टेशन पर भी ट्रेन के द्वारा पहुंचा जा सकता है। बस के जरिए भी मंदसौर देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
माह | श्रद्धालुओं की संख्या |
जनवरी | 44 हजार |
फरवरी | 39 हजार |
मार्च | 40 हजार |
अप्रैल | 37 हजार |
मई | 46 हजार |
जून | 48 हजार |