मंदसौर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। मंदसौर जिले का गांधीसागर अभयारण्य चीते बसाने की पहली परीक्षा में पास हो गया है। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून से आए विज्ञानी यूवी झाला व उनके साथ आए तीन लोगों की टीम ने दो दिन तक अभयारण्य का भ्रमण किया है। यहां की परिस्थितियां देखी है। और प्रथम चरण में गांधीसागर का पर्यावास विज्ञानियों को चीते के आवास के लिए अनुकूल लगा है। इसका मतलब यह मान सकते हैं कि पहली परीक्षा में गांधीसागर पास हो गया है। हालांकि अभी लंबे परीक्षण होना है और अभी चार से पांच बार विभिन्न स्तरों पर सर्वे होंगे। बुधवार को दोपहर बाद चार सदस्यीय टीम वापस लौट गई।
मंदसौर जिले में प्राकृतिक संसाधनों पहाड़, घास के मैदान, ऊंचे पैड, छोटी झाडि़यों, कंदराएं, गुफाएं सहित पानी की प्रचुर उपलब्धि गांधीसागर अभयारण्य को सभी वन्य प्राणियों व पक्षियों के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है। और इसी के चलते यहां चीतों को बसाने की पहली परीक्षा गांधीसागर अभयारण्य ने पास कर ली है। दरअसल भारत सरकार ने अफीका, इरान, नामीबिया या अन्य किसी देश से चीते को लाकर भारत में बसाने की प्रक्रिया शुरू की है।
इसके लिए मप्र के चार अभयारण्य मंदसौर जिले के गांधीसागर अभयारण, श्योपुर जिले का कूनो पालपुर नेशनल पार्क, सागर का नौरादेही अभयारण, शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में से एक जगह का चीते बसाने के लिए चयन होना है। सरकार ने इन चारों जगहों को चीते की बसाहट के अनुकूल माना है। इसका फैसला करने के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के विज्ञानी वीवाय झाला अपने तीन साथियों के साथ मंगलवार को आए थे। दल में शामिल लगभग आठ विज्ञानियों ने सुबह से शाम तक घने जंगल का दौरा किया।
यहां घास के मैदान देखे। इसके अलावा जंगलों का घनापन देखा, पहाड़ व कंदराएं भी देखी गई। दल देर शाम तक जंगल में ही घूम रहा था। भारतीय वन्य जीव संस्थान से आए विज्ञानियों के दल ने बुधवार सुबह भी गांधीसागर अभयारण का दौरा किया। वन विभाग के अधिकारियों के साथ टीम ने अभयारण्य में मौजूद घने जंगलों, घास के मैदान ऊंचे पेड़ो, पहाड़ों में मौजूद प्राकृतिक गुफाओं व छोटी कंदराओं को भी देखा। दोपहर तक दौरा चल ही रहा था। दोपहर बाद वन विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर यह दल चला गया। अब यही दल शेष बची जगहों का दौरा कर तय करेगा कि कौनसी जगह चीतों के अनुकूल है। हालांकि समिति के चयन करने के बाद भी चीतों को भारत आने में लगभग तीन साल का समय लगेगा।
पहले से ही था दावा मजबूत, विज्ञानियों ने भी जताई खुशी
मप्र में चीतों को बसाने में गांधीसागर अभयारण्य का दावा पहले से ही मजबूत लग रहा था। मंगलवार-बुधवार को आए भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के विज्ञानी यूवी झाला ने यहां का पर्यावास चीते के लिए अनुकूल माना है। हालांकि अभी परीक्षा के और भी कई चरण बाकी है। अलग अलग स्तरों पर गांधीसागर अभयारण्य में टीमे आएगी और सर्वे करेगी। इन सभी सर्वे की रिपोर्ट मप्र व केंद्र सरकार को भेजी जाएगी। उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। तब जाकर तय होगा कि चीते गांधीसागर में दहाड़ेंगे या फिर अन्य अभयारण में।
368 वर्ग किमी में फैला है अभयारण्य
अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में बसे प्राकृतिक गांधीसागर अभयारण्य में वह सभी कुछ है जो वन्य प्राणियों के लिए चाहिएं। यहां घास के मैदान है तो पहाड़ में कंदराएं है इसके अलावा घना जंगल भी है। लगभग 368 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला अभयारण्य में जंगली पेड़ों में खेर, बेर, पलाश सहित अन्य प्रजातियां भी है। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण अथाह पानी से भरा जलाशय है। यह सभी बाते इस अभयारण्य को वन्य जीवों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराते हैं। गांधीसागर अभयारण्य में दो साल पहले आखिरी बार हुई गिनती में लगभग 50 तेंदुए मिले थे। इसके अलावा लकड़बग्घे, जंगली लोमड़ी भी काफी तादात में हैं। बाकी छुट पुट वन्य प्राणी भी है। इसी साल हुई पक्षी गणना में 225 तरह के पक्षियों की प्रजातियां यहां मिली हैं। चीतों को यहां बसाने की योजना में उनके भोजन का प्रबंध अभी से वन विभाग ने शुरू कर दिया है। इसके लिए हिरण प्रजाति के चीतल को यहां लाकर बसाया जा रहा है। समीपी राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ वन क्षेत्र से 500 चीतलों को लाने का लक्ष्य है। वहां बोमा लगाकर चीतलों को पकड़ा जा रहा है। अभी तक लगभग 40 चीतल लाकर छोड़े गए है।