मंदसौर। Gandhi Sagar Dam अपने निर्माण के समय एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील गांधीसागर बांध ने मंगलवार को 59 साल पूरे कर लिए हैं। छह साल में बनकर तैयार हुए बांध का भूमिपूजन और लोकार्पण दोनों ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) ने किया था। 19 नवंबर को इंदिराजी का जन्मदिन(Indira Gandhi Birthday) होने से यही तिथि पं. नेहरू ने तय की थी और 19 नवंबर 1960 को पं. नेहरू ने राष्ट्र को समर्पित किया था। गांधीसागर बांध पर बिजलीघर भी बना है। इसकी क्षमता 115 मेगावॉट है। 23 मेगावॉट क्षमता की पांच टरबाइन हैं। मप्र की प्रमुख चंबल नदी(Chambal River) पर बने गांधीसागर बांध की पूर्ण भराव क्षमता 1313 फीट है। इसमें कुल 19 गेट हैं। 9 बड़े व 10 छोटे गेट हैं। बांध से एकसाथ लगभग 5.50 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जा सकता है।
इंदिराजी का जन्मदिन होने से तय हुई थी लोकार्पण की तारीख
बांध से जुड़ी कई बातें तो अब तक लोगों को बताई जा चुकी है। अब यह एक नई बात पता चली है कि गांधीसागर बांध का लोकार्पण 19 नवंबर को क्यों हुआ था। दरअसल 19 नवंबर 1960 को लोकार्पण की तारीख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसलिए तय की थी कि उस दिन उनकी पुत्री इंदिराजी का जन्मदिन रहता था। बाद में इंदिराजी भी प्रधानमंत्री बनी। मंदसौर जिले से राजस्थान की लगती हुई सीमा के पास ही गांधीसागर बांध की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 7 मार्च 1954 को रखी थी। यहां बिजलीघर का काम 1957 में काम शुरू हुआ था। बिजली उत्पादन और इसका वितरण नवंबर 1960 में ही शुरू हुआ था। गांधीसागर बांध और पावर स्टेशन के निर्माण पर लगभग 18 करोड़ 40 लाख रुपए खर्च हुए थे। गांधीसागर का बिजलीघर 65 मीटर लंबा और 56 फीट चौड़ा है। इसमें 23 मेगावॉट क्षमता की पांच टरबाइन है। इसकी कुल क्षमता 115 मेगावॉट बिजली उत्पादन की है। बनने के बाद बांध पर नियमित बिजली उत्पादन होता था और अब यहां जरूरत होने पर ही बिजली उत्पादित की जाती है। पहले यहां से जिले में बिजली की जरूरत पूरा करने के अलावा, मप्र और राजस्थान में भी कई जगह तक बिजली सप्लाई की जाती थी।
कम व्यय में समय सीमा में बना था बांध, पद्मश्री से किया था सम्मानित
बांध जल संसाधन विभाग के तत्कालीन चीफ इंजीनियर एके चाहर, अधीक्षण यंत्री सीएच सांघवी, सिविल शिवप्रकाशम इलेक्ट्रिकल के मार्गदर्शन में बना था। बांध की गुणवत्ता एवं एशिया में सबसे कम व्यय 18.40 करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुआ था। बांध की समयसीमा में पूर्ण होने पर चीफ इंजीनियर चाहर को पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित भी किया गया था। बांध का मॉडल खडग्वासला रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना ने बनाया था।
चंबल वेली परियोजना के तहत बने थे चार बांध
महू के पास जानापाव पहाड़ी से निकलकर चंबल नदी मप्र, राजस्थान व उप्र में लगभग 960 किमी का सफर तय कर यमुना नदी में मिलती है। प्रारंभ में मंदसौर जिले में बनने वाले बांध को चंबल घाटी परियोजना नाम दिया गया था। इसे चार चरणों में पूरा किया जाना था। प्रथम चरण में गांधीसागर, दूसरे चरण में रावतभाटा में राणाप्रताप सागर और तीसरे चरण में कोटा के पास जवाहर सागर व चौथे चरण में कोटा बैराज बनाए गए। पहले तीन बांधों से विद्युत उत्पादन और चौथे से सिंचाई का लक्ष्य रखा गया था। कुल मिलाकर इंटरनेशनल कंट्रोल बोर्ड के निर्देशन में मप्र राजस्थान की धरती को सिंचित करने का भारत विकास प्राधिकरण का यह दूसरा सपना पूरा हुआ।
इसी साल खतरा बन गया था बांध
अपने निर्माण के बाद से कई बार ज्यादा बरसात भी हुई और अनुमान से ज्यादा पानी भी गांधीसागर बांध में आया पर सितंबर 2019 में हुई अतिवृष्टि और अधिकारियों की लापरवाही ने गांधीसागर बांध को खतरे के मुंह पर खड़ा कर दिया था। 14-15 सितंबर 2019 की दरमियानी रात में मंदसौर, इंदौर, उज्जैन, रतलाम, प्रतापगढ़ व नीमच जिले में लगातार हुई बारिश के चलते बांध में पानी की आवक 19 लाख क्यूसेक तक पहुंच गई थी। बांध से पानी निकलने की क्षमता केवल 5.50 क्यूसेक होने से बैकवॉटर लगभग 150 गांवों में घुस गया। वहीं नीमच जिले के रामपुरा में भी बांध बनने के बाद पहली बार पानी घुस गया, जो काफी दिनों बाद निकला। इधर बांध का जलस्तर 1321 फीट तक पहुंचने के बाद पानी ऊपर से निकलकर बिजलीघर में घुस गया। वहां की सभी टरबाइन भी खराब हो गई है, जो अभी भी नहीं सुधर पाई है।
बांध को कुछ होता को कोटा व रावतभाटा बह जाते
गांधीसागर बांध क्षतिग्रस्त होता तो इससे राजस्थान का प्रमुख शहर कोटा व रावतभाटा पूरी तरह बह जाते। बांध में भरी अथाह जलराशि रावतभाटा के परमाणु बिजलीघर को भी तबाह कर देती। हालांकि उस समय तो प्रदेश में मुख्य सचिव भी इस बात को नकार रहे थे और कह रहे थे बांध को 1325 फीट तक बढ़ने में कोई खतरा नहीं था, पर अभी एक दिन पहले ही जिले के प्रभारी मंत्री हुकुमसिंह कराड़ा ने शाजापुर में स्वीकार किया है कि गांधीसागर बांध के टूटने का खतरा बढ़ गया था।