Opium Production Mandsaur: नईदुनिया प्रतिनिधि, मंदसौर। अफीम की फसल को किसान बच्चों की तरह पालते है। यह खेतों में अब दिखने भी लगा है। खेतों में अभी अफीम कहीं एक तो कहीं डेढ़ माह की हो चुकी है। खेतों में अफीम उगते ही इस नाजुक फसल को सही सलामत बचाने के लिए किसान सतर्क हो गए है। फसल को मौसम की मार से बचाने के साथ ही पशु-पक्षियों विशेषकर नीलगायों से बचाने के लिए 10 आरी के अफीम खेत में किसान सुरक्षा की जाली लगा रहे हैं।
10 आरी के अफीम पट्टे में उग रही अफीम की सुरक्षा के लिए किसान 20-20 हजार से भी अधिक खर्च कर देते है। इसके साथ ही जैसे-जैसे अफीम की फसल बढ़ रही है, वैसे-वैसे किसान खेतों में सुरक्षा का पहरा भी मजबूत कर रहे है।
मंदसौर में ठंडी रातों के बावजूद किसान अनेक किसान अफीम की सुरक्षा के लिए खेतों पर ही सो रहे है। अक्टूबर माह से प्रारंभ हुआ पट्टा वितरण नवंबर के पहले पखवाड़े तक खत्म हो गया था। पट्टे मिलते ही खेतों में किसानों ने बोवनी की, अफीम की फसल फरवरी माह में पककर तैयार हो जाती है। अभी दिसंबर में खेतों अफीम की हरियाली छा गई है।
अफीम की फसल उगते ही किसानों ने खेतों पर सतर्कता बढ़ा दी है। अधिकांश किसान खेतों पर ही रात बिता रहे हैं। पशु-पक्षियों से बचाने के लिए अफीम खेत के आसपास जालियां बांधकर सुरक्षित किया गया है। किसानों का कहना है की सबसे ज्यादा जिले में नीलगायों का आतंक है। एक बार नील गाय खेत में घुस जाए तो पूरी फसल रौंद देती है।
इसके साथ ही ठंड का असर भी बढ़ रहा है रात में तापमान कम होने के साथ ही पारा गिरने की आशंका भी रहती है इसी को देखते हुए किसान अपने खेतों में पशु-पक्षीयों से सुरक्षा के लिए जाली बांध रहे है, वहीं शीतलहर से बचाने के लिए साड़ी, तिरपाल भी बांधे जा रहे है। अफीम पककर तैयार होती है तब तोते भी अफीम खाते है, इसलिये भी किसानों ने फसल के ऊपर की तरफ भी जाली बांधी है।
मंदसौर जिले में इस साल नियमित एवं सीपीएस मिलाकर करीब 18 हजार किसानों को पट्टे वितरित हुए थे। पिछले साल से अफीम खेती में सीपीएस के पट्टे भी जुड़ गए है। इससे अफीम खेती करने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ गई है। पहले तीनों खंडो में नियमित पट्टेधारी करीब 14 से 15 हजार किसान थे। सीपीएस पद्धति से अफीम खेती में यह दूसरा साल है।