खरगोन, मध्य प्रदेश। लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में रविवार को मध्य प्रदेश की 8 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। आखिरी दौर में जनता को रिझाने के लिए दोनों ही पार्टियों ने ताकत झोंकी हुई है। इसी कड़ी में आज निमाड़ के खरगोन में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हुई। इस रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निमाड़ के रॉबिनबुड नाम से मशहूर भीमा नायक का जिक्र किया और 1857 की सैन्य क्रांति के दौरान उनके योगदान को याद किया। आखिर भीमा नायक कौन थे ? कैसे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति में अपनी छाप छोड़ी।
भीमा नायक आदिवासी यौद्धा थे। आजादी की जंग में भीमा नायक ने अकेले अपने बूते अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दी थीं। अंग्रेज भीमा नायक के नाम से कांपते थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में आदिवासियों को एकुजट किया था।भीमा नायक के जीवन को लेकर अब भी कई तथ्य अबूझ ही हैं। हालांकि अब तक हुए शोध के अनुसार भीमा का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से वर्तमान महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है। 1857 में हुए अंबापानी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अंग्रेज जब भीमा को ऐसे नहीं पकड़ पाए तो उन्हें उनके ही किसी करीबी की मुखबिरी पर धोखे से पकड़ा गया था। उनके योगदान और मौत को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं। उसी शोध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी सामने आया है कि उस समय( 1857 क्रांति) जब तात्या टोपे निमाड़ आए थे तो उनकी मुलाकात भीमा नायक से हुई थी। उस दौरान भीमा ने उन्हें नर्मदा पार करने में सहयोग किया था।
पोर्ट ब्लेयर से मिला मृत्यु प्रमाण-पत्र
निमाड़ के रॉबिनहुड कहलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भीमा नायक का कुछ साल पहले मृत्यु प्रमाण-पत्र पहली बार सामने आया था। जिसमें ये जिक्र था कि उनकी मौत 29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में हुई थी। नायक की जीवन की अबूझ सचाइयों को जानने के लिए यूजीसी स्वीकृत शोध परियोजना पर काम कर रहे पीजी कॉलेज बड़वानी के दो प्राध्यापकों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखे ढेरों दस्तावेजों में से यह प्रमाण हाथ लगा था।
शोधार्थी डॉ. पुष्पलता खरे व डॉ. मधुसूदन चौबे ने दावा किया है कि भीमा नायक की मृत्यु को लेकर अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं थी। राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली से जो दस्तावेज मिला है उससे जाहिर होता है कि मृत्यु प्रमाण-पत्र तत्कालीन पोर्ट ब्लेयर व निकोबार के कनविक्ट रिकॉर्ड डिपार्टमेंट से जारी किया गया था। डॉ. चौबे ने बताया कि भीमा नायक ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था। अंग्रेज सरकार द्वारा उनके खिलाफ दोष सिद्ध होने पर उन्हें पोर्ट ब्लेयर व निकोबार में रखा गया था।