Organic Farming in Jail: दीपक सपकाल, खंडवा। जो हाथ कभी अपराध करने के लिए उठे थे, उन्हीं हाथों में कुदाली व फावड़ा है। जेल में रहकर बंदी खेती कर रहे हैं। यहां जैविक खेती की जा रही है। कम जगह में विकट परिस्थितियों के बीच जेल प्रशासन ने कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह प्रयास किया है ताकि जब वे यहां से बाहर जाए तो उनके पास एक हुनर हो। जेल में गोभी, टमाटर, पालक, लौकी, बैंगन और मूली लगाई गई है। 50 किलो टमाटर उगाकर जेल सुर्खियों में है। शहीद जननायक टंट्या भील जिला जेल में बंदियों के जीवन सुधारने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं ताकि वह अपनी अपराध भरी जिंदगी को बदलकर जेल से रिहा होने के बाद एक नए कल की शुरुआत कर सकें। खंडवा जिला जेल में उप जेल अधीक्षक ललित दीक्षित ने यह बीड़ा उठाया है।
वह रोज अपने ड्यूटी से थोड़ा समय इन बंदियों के लिए निकल कर इन्हें जैविक खेती सिखा रहे हैं। बंदियों को खेती के लाभ और उससे जुड़ी हुई चीजें सिखाई जा रही हैं। वैसे तो जेल में जगह की काफी कमी है लेकिन जो थोड़ी बहुत जगह है वहां पर तमाम तरह की सब्जियां लगाकर खेती की जा रही है। खास बात यह है कि खेती में किसी भी प्रकार कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि जेल में ही बंदियों के भोजन से बचा वेस्ट और चाय-पत्ती सहित अन्य वेस्ट चीजों की मदद से कई प्रकार की सब्जियां उगा रहे हैं।
जेल में हो रही खेती की खास बात यह है कि यहां जैविक खेती की जा रही है। जेल में बंदी बागवानी करते हुए सब्जी उगा रहे हैं। यहां की सभी सब्जियां जैविक खेती पर आधारित है। सब्जी का उत्पादन कर जेल प्रशासन अपने मेस का खर्च भी वहन कर रहा है। गोभी, पालक, मूली, बैगन, टमाटर, मैथी और लौकी का उत्पादन हो रहा है। टमाटर यहां बहार पर है। एक पौधे में 20 से अधिक टमाटर लगे हुए हैं। हर दिन यहां 50 किलो टमाटर निकल रहा है। इसका उपयोग जेल के बंदी खाने के लिए कर रहे हैं। इससे उनके भोजन का स्वाद दोगुना हो गया है। वहीं बंदियों को प्रतिदिन ताजी हरी सब्जियां तथा सलाद भोजन में मिल रहा है।
जेल में खेती के लिए पर्याप्त जगह नहीं हैं। इसके चलते जेल में बैरक के आसपास खाली पड़ी जगह को खेती के लिए तैयार किया गया है। इस तरह से अलग-अलग हिस्सों में खेती की जा रही है। कहीं पर केवल गोभी लगाई गई है तो कहीं पर केवल टमाटर की खेती है। इस तरह से यहां बंदियों से खेती करवाई जा रही है। बंदी भी इस काम में अपना पसीना बहा रहे हैं। यहां पपीता भी लगाया गया है।
उप जेल अधीक्षक ललित दीक्षित का कहना है कि हमारी कोशिश होती है कि बंदी जेल से छूटने के बाद समाज से अलग न हों। वे फिर से अपना सामान्य जीवन जी सकें। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए जिला जेल में बंदियों को खेती और इस तरह की विभिन्न गतिविधियों से इन्हें जोड़ा जा रहा है। जेल में सजा काट रहे बंदियों में सुधार लाने के लिए कैदियों को खेती का काम सिखाया जाता है। कम संसाधन और कम जगह में खेती की जा रही है। सजायाफ्ता और वे बंदी जिन्हें खेती का काम आता है उनसे खेती करवा रहे हैं। यहां की खास बात यह है कि यहां खेती पूरी तरह से जैविक है। सब्जियों के वेस्ट से खाद बनाते हैं। बाहर से गोबर लेकर भी आते है। अब यहां कैचुए की खाद बनाने का प्रयास किया जा रहा है।