MP Wheat Production: नईदुनिया प्रतिनिधि, खंडवा। रबी के सीजन में मौसम की मार ने किसानों की धड़कन बढ़ा दी है। पिछले दिनों लगतार सिने वाली धुंध ने फसलों का मिजाज बदल दिया है, जिसके कारण चने में कम फ्लावरिंग, गेहूं में इल्ली का आना तथा मक्का में भी इल्ली का प्रकोप फसल को खोखली कर रहा है। इस बार निमाड़ क्षेत्र में चने की फसल 90 हजार हेक्टेयर में बोई गई है।
जिसका मुख्य कारण चने के बढ़ते भाव हैं। अन्य फसलों में किसानों को उतना मुनाफा नहीं मिलता जितना कि चने की फसल में मिलता है तथा मेहनत भी कम ही है। वहीं दूसरी और गेहूं की फसल में भी इल्ली का प्रकोप होने के कारण किसान काफी चिंतित हैं। गेहूं में कभी भी कीट नाशक का छिड़काव नहीं किया जाता है, लेकिन इस बार पेस्टिसइड का सप्रे करना पड़ रहा है।
मक्का की फसल में लगातार इल्ली का प्रकोप होने के कारण किसानों के लिए यह काफी खर्चीली फसल हो गई है। क्योंकि शुरुआती दिनों से ही मक्का की फसल का विशेष ध्यान रखना होता है। मौसम वैज्ञानिक डा. सौरभ गुप्ता के अनुसार इस बार मौसम में बार-बार परिर्वतन से फसलें प्रभावित हुई हैं। किसानों को समय समय पर सलाह जारी की गई।
जिन्होंने इसका सही समय पर सही उपयोग किया उन्हें निश्चित रूप से फायदा मिला है। सामान्य तौर पर किसान बीमारी आने पर कई दवाओं का डोज बनाकर मिलाता है। जिससे की दवाईयां कारगर नहीं रहता और पौधों के फूल और बहार को भी नुकसान पहुंचाती है। गेहूं और चने की फसल पर दो माह में तीसरी बार बीमारियों का प्रकोप हुआ है। इस पर जिन्होंने समय पर ध्यान नहीं दिया उनकी फसलें प्रभावित हैं।
इस वर्ष किसानों को ना तो कपास के भाव मिल पाए हैं और ना ही सोयाबीन के। पूरी आशा चना और गेहूं पर थी, लेकिन मौसम के चलते यहां भी साफ नजर नहीं आ रही है। सोयाबीन 5000 से शुरू हुआ था जो 4200 से 4300 पर आकर खड़ा है। किसान यह ही नहीं समझ पा रहा है कि खेती के खर्चों को कैसे निकाल पाएगा। शासन द्वारा गेहूं का समर्थन मूल्य 2700 कर दिया गया है, लेकिन अन्य फसलों के समर्थन मूल्य पर भी विचार करना चाहिए।
खंडवा क्षेत्र के कृषकों का कहना है कि कोहरे ने चने की फसल पर अटैक किया है तथा बारिश भी नुकसान भरी रही थी। अब मौसम साफ हुआ है चने में भी उत्पादन बढ़ेगा। फ्लावरिंग भी होगी पर किसानों को अभी फसलों को ध्यान देना होगा। अगर उत्पादन कम होगा तो किसानों को चने के अच्छे भाव भी मिलेंगे जो उनके नुकसान की पूर्ति कर देगा।
इस संबंध में कीटनाशक एवं बीज विक्रेता ने बताया कि चने में 60 से 100 दिन के भीतर फ्लावरिंग एवं घेटे बनने की प्रक्रिया चलती रहती है। मौसम ने जरूर कुछ नुकसान किया है परंतु एक अच्छा सो कर हम चने में फिर से फ्लावरिंग ला सकते हैं तथा उत्पादन भी ले सकते हैं, समय रहते हमें संभालना होगा।
क्राप कटिंग चल रही है
मौसम में परिवर्तन से फसलें प्रभावित हुई है। क्राप कटिंग की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है। इसके बाद ही आंकड़ा सामने आएगा कि कितना उत्पादन घटा है। - केसी वास्केल, कृषि उपसंचालक, खंडवा