ऑनलाइन संगोष्ठी में युवा रचनाकारों ने रखे अपने विचार
आज का इंसान वक्त के साथ क़दम से क़दम कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। इसका जीता जागता प्रमाण आप सोशल मीडिया पर देख सकते हैं। एक वक्त था जब हमें शायरी, गीत, गलें, नज्में, लेख व कहानियां किताब, मैगीन, रिसालों में ही पढ़ने को मिला करते थे। लॉकडाउन में दुनियाभर की खबरें हमें सोशल मीडिया पर मिल रही थीं। सोशल मीडिया के माध्यम से हम घर बैठे ही आज जिसे चाहे उसे पढ़ सकते हैं। नए साहित्यकारों के लिए अवसरों की आज कमी नहीं है।
यह बातें सोशल मीडिया के साहित्यिक पटल आशकार की फाउंडर व वरिष्ठ शायरा ज्योति आजाद ने कहीं। उन्होंने कहा कि एक तरफ साहित्य जगत की वेबसाइट ने हर बड़े छोटे शायर के कलाम को सिर्फ; जगह नहीं दी, बल्कि नए लिखने वालों का शायरी की तरफ रुझान भी बढ़ाया है। ई-बुक्स, ऑडियो, वीडियो के रिये लोगों का अदबी ौक़ बढ़ाया है। वही दूसरी तरफ लाइव सेशंस के रिए न सिर्फ हमारा मनोरंजन किया गया, बल्कि नए लिखने वालों का उत्साहवर्धन भी किया गया। वहीं वरिष्ठ शायरा रेनू नैयर ने चर्चा में कहा कि किसी भी फ़न या फ़नकार के लिए सरहदें मायने नहीं रखतीं, इसे साहित्य ने साबित कर दिखाया। बहुत से पेज हैं फेसबुक पर, जो अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहें हैं। हमें घर बैठे अच्छे शायर और शायरी से जोड़ने का काम सोशल मीडिया पर कई पटल कर रहे हैं। युवा साहित्यकार सतीश दुबे सत्यार्थ ने कहा कि नए लिखने वालों को आजकल तमाम मौके मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक पटल बेहतर मौके दे रहा है। हमारे युवा ऑनलाइन चर्चा में बेहतर कर रहे हैं।