PM Modi in Jhabua: नईदुनिया प्रतिनिधि, झाबुआ। मध्य प्रदेश के साथ ही केंद्र की सियासत में भी जनजाति समुदाय की उपस्थिति प्रभावी होती जा रही है। लोकसभा चुनाव के पहले झाबुआ में पीएम नरेन्द्र मोदी की पहली ही सभा से भाजपा ने इस समुदाय को साधने का प्रयास किया है। झाबुआ में जनजाति सम्मेलन के जरिए पीएम ने न सिर्फ 7550 करोड़ रुपये के विकास कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया, बल्कि जनजाति समुदाय का मन मोहने का प्रयास भी किया।
इस आयोजन का समय और स्थान दोनों ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम हैं। यहां से न सिर्फ मप्र, बल्कि गुजरात,राजस्थान और महाराष्ट्र के बड़े क्षेत्र पर सीधा प्रभाव पड़ता है, बल्कि छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा जैसे जनजाति समुदाय बहुल राज्यों में भी संदेश जाता है। आइए समझते हैं झाबुआ क्यों है रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और जनजाति समुदाय पर क्यों है राजनीतिक दलों की निगाह।
झाबुआ आदिवासी सियासत का केंद्र है। भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र गुजरात और राजस्थान की सीमाओं से जुड़ा है। महाराष्ट्र भी पास है। चारों राज्यों की सीमावर्ती क्षेत्रों की कई लोकसभा सीटें आदिवासी बहुलता वाली हैं। ऐसे में यहां से चारों राज्यों के आदिवासी मतदाताओं को साधना आसान है।
पीएम मोदी कई बार झाबुआ आ चुके हैं। वे वर्ष 2023 विधानसभा चुनाव और इसके पहले हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी यहां आ चुके हैं। वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहते वर्ष 2003 में झाबुआ आए थे। बीते वर्षों में मतदाताओं के बीच पीएम मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ी हैं और उनके नाम पर पार्टी को मत मिलते हैं।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज का मत कांग्रेस को गया था। पार्टी ने 47 में से 30 सीटें जीती थी, जबकि 16 भाजपा को मिली थीं। इसके बाद भाजपा ने इस इलाके में सक्रियता बढ़ाई। वर्ष 2019 में लोकसभा की सभी आदिवासी सीटें भाजपा ने जीती। विधानसभा में भी भाजपा की सीटें बढ़ीं। बिरसा मुंडा जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जैसे कई नीतिगत फैसले लिए गए।
- मध्य प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटों में से छह सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा यह सभी सीटें जीती थीं। इनमें धार, खरगोन, मंडला, शहडोल, बैतूल और रतलाम सीट शामिल है।
- मध्य प्रदेश में आदिवासी मतदाता 47 विधानसभा सीट आदिवासी (अनुसूचित जनजाति वर्ग) के लिए आरक्षित है। हालिया विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं ने किसी एक पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं किया। भाजपा ने 26 जबकि कांग्रेस 22 जीती थीं। अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कांग्रेस का प्रदर्शन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बेहतर रहा था।
- आदिवासी समाज के प्रतिनिधि संगठन के रूप में उभरे जयस में भी फूट पड़ी है। ऐसे में राजस्थान की भारत आदिवासी पार्टी ने मप्र में रतलाम लोकसभा क्षेत्र से खाता खोला और कमलेश्वर डोडियार सैलाना से जीते हैं। भाजपा बड़े वोट बैंक को छिटकने नहीं देना चाहती।
हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बावजूद लोकसभा की दृष्टि से देखें तो आदिवासी बहुल धार, खरगोन और मंडला में कांग्रेस बेहतर स्थिति में रही, जबकि रतलाम में मुकाबला बराबरी का था।
रतलाम लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा में से भाजपा को चार और कांग्रेस को तीन सीट मिली थी। सैलाना की एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी ने खाता खोला था। झाबुआ सीट भी कांग्रेस के खाते में गई थी। धार की आठ सीटों में से पांच पर कांग्रेस जीती थी। खरगोन और मंडला में भी कांग्रेस ने पांच-पांच विधानसभा सीटें जीती थीं।