Xerces blue butterfly : जबलपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जबलपुर की विविधता में एक नया आयाम जुड़ गया है। डायनासोर के जीवाष्म के बाद यहां तितलियों की एक दुलर्भ प्रजाति मिली है। ये विलुप्त हो चुकी प्रजाति की जेरसेस ब्लू बटरफ्लाई है। जो जबलपुर में दो बार यह तितली मिली है। आखिरी दफा 1941 में इस प्रजाति की तितली को अमेरिका के फ्लोरिडा में देखा गया था। अब 81 साल बाद इस प्रजाति का जबलपुर में मिलना पर्यावरणविदों के लिए बेहद चौकाने वाला है। विलुप्त प्रजाति के जींव—जंतुओं का रिकार्ड दर्ज करने वाली जूस प्रिंट पत्रिका ने भी जबलपुर के विज्ञानियों के दावे को अपने जर्नल में प्रकाशित किया है।
किसने की खोज—
शासकीय खमरिया कालेज की प्राचार्य डा. रीता भंडारी के मार्गदर्शन में डा.अर्जुन शुक्ला एवं श्रद्धा खापरे ने यह शोध किया। डा.अर्जुन शुक्ला ने बताया कि हम तितलियों की प्रजाति खोज रहे थे। विलुप्त तितली पहली बार 19 अक्टूबर 2021 को बरगी डैम के करीब मिली। वहीं दूसरी बार 16 दिसंबर 2021 को देवताल की पहाड़ी में इसे देखा गया। जिसके बाद हमने तितलियों के फोटो लेकर इसकी खोज की। 2015 में प्रकाशित विज्ञानियों की रिकार्ड सूची के मुताबिक इस प्रजाति क उल्लेख भारत में कही नहीं मिला। जिसके बाद हमने इसे दुलर्भ मानकर जू'स प्रिंट जर्नल में प्रकाशन हेतु भेज दिया। यहां 15 माह की लंबी जांच पड़ताल के बाद 21 फरवरी को इस शोध का प्रकाशन हुआ।
1500 प्रजाति तितलियों की—
जेरसेस ब्लू बटरफ्लाई की यह प्रजाति भारत में पहली बार मिली है। 1941 में अंतिम बार इसे देखा गया था। भारत में अब तक 1500 तितलियों की प्रजाति मिली है। जबकि मप्र में जूलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के रिकार्ड सूची के अनुसार 174 प्रजाति दर्ज की गई है। डा.अर्जुन ने कहा कि इसके पूर्व में भी नर्मदा क्षेत्र जबलपुर में मोलस्का की नई प्रजातियां मिली हैं, इन सभी उपलब्धियों ने संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा क्षेत्र में शोध कार्य करने की प्रबल संभावनाओं को बल प्रदान किया है। विज्ञानी डा.अर्जुन ने बताया कि तितलियों का पृथ्वी पर आदिकाल से अस्तित्व रहा है । अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर इनकी उपस्थिति के करण ये सदैव सभी के आकर्षण का केंद्र रही हैं। सर्वप्रथम 1852 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक गण-लेपिडोप्टेरा के विशेषज्ञ बोइसडुवल ने जेरसेस ब्लू बटरफ्लाई को खोजा था, परन्तु लम्बी अवधि तक इसकी अनुपस्थिति के बाद 1941 में अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक सरंक्षण संघ ने इसे विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया था।
जूस प्रिंट पत्रिका क्या—
जूस प्रिंट जर्नल प्रकाशित करने वाली पत्रिका है। इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और अन्य उष्णकटिबंधीय देशों सहित सभी सार्क देशों के संरक्षण समुदाय के लेखों को प्रकाशित किया जाता है। इस पत्रिका में वर्षों से जूलाजी के क्षेत्र में नई प्रजातियों की खोज, फर्स्ट रिकार्ड, न्यू रिकार्ड एवं कई महत्वपूर्ण शोध को प्रकाशित किया जाता रहा है। इस वर्ष भी इस पत्रिका में पुरुलिया, भारत से डबल-ब्रांडेड क्रो बटरफ्लाई का पहला रिकार्ड प्रकाशित किया गया है l
कैसे की पहचान—
डा.अर्जुन शुक्ला और श्रद्धा खापरे ने बरगी में जब इस प्रजाति को देखा तो उनके में इसकी पहचान को लेकर जिज्ञासा हुई। उन्हें अंदेशा हुआ कि यह विलुप्त प्रजाति है। गहन अध्ययन व टेक्सोनोमिक कीज की सहायता से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह जेरसेस ब्लू बटरफ्लाई ही है। डा.अर्जुन के मुताबिक पहले ठीक इसी तरह की दिखने वाली सिल्वरी ब्लू बटरफ्लाई के कारण संशय हुआ पर शीघ्र ही इसके शारीरिक बनावट पंख और रंग आदि का मिलान करने पर सुनिश्चित हुआ यह दुलर्भ प्रजाति की तितली है।