MP High Court: जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। हाई कोर्ट ने बागेश्वर धाम के अयोजन को चुनौती देने वाली वह जनहित याचिका निरस्त कर दी, जिसके जरिए आगामी 23 व 24 मई को बालाघाट के परसवाड़ा में निर्धारित कार्यक्रम पर सवाल खड़ा कया गया था। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की ग्रीष्म अवकाशकालीन एकलपीठ ने तल्ख टिप्पणी में कहा कि इस जनहित याचिका में ऐसे कोई ठोस तथ्य रेखांकित नहीं किए गए, जिनसे यह साबित हो कि बागेश्वर धाम के आयोजन से आदिवासियों के हित प्रभावित होंगे। लिहाजा, जनहित याचिका सुनवाई योग्य न पाते हुए निरस्त की जाती है। जनहित याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष दिनेश कुमार धुर्वे की ओर से अधिवक्ता प्रहलाद चौधरी ने पक्ष रखा।
अधिवक्ता प्रहलाद चौधरी ने दलील दी कि आगामी 23 व 24 मई को परसवाड़ा के ग्राम भादुकोटा में बागेश्वर धाम का आयोजन होना है। चूंकि यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य वाला क्षेत्र है, अत: इस धार्मिक आयोजन से आदिवासियों का हित प्रभावित होगा। इसके साथ ही आयोजन को लेकर मुख्य आपत्ति यह है कि पेसा एक्ट के तहत किसी भी आयोजन के पूर्व नियमानुसार ग्राम सभा की अनुमति लेना आवश्यक है, जो कि नहीं ली गई। इसी तरह इस आयोजन के लिए शासन-प्रशासन द्वारा कानून-व्यवस्था के सिलसिले में उठाए जा रहे कदम भी अवैधानिक हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस प्रक्रिया में सरकारी मशीनरी का उपयोग होगा।
राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जान्हवी पंडित ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पेसा एक्ट में ग्राम सभा की अनुमति की अनिवार्यता नहीं है। इसके अलावा प्रथमदृष्ट्या यह जनहित कम प्रयोजित याचिका अधिक प्रतीत होती है। दरअसल, शासन-प्रशासन ने कानून व्यवस्था के बिंदु पर गंभीरता से विचार करने के बाद ही आयोजन की अनुमति दी है। हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद जनहित याचिका को सुनवाई योग्य न पाते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।